पृष्ठ:कालिदास.djvu/२०७

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फालिवास की वैवाहिकी कविता । जान पाता है, यह सिद्धान्त हमारे महाकरि को पहले ही से विदित था। यदि पिदितं न होता तो ऐसे बैशानिक तत्व से भरी हुई उपमा पाप किस तरह दे सकते १ कुछ भी हो, यह निर्विवाद है कि पृथ्वी का धूमना और मेह के पास दिन और रात का परस्पर संलग्न होना कालिदास को अवश्य मालूम था। अघ और सप धैवाहिक प्राचार हो चुके तप विवाह-मण्डप के नीचे ही, सय के समक्षा, कालिदास ने पार्वती को योलने के लिए लाचार किया। इस विषय का यह अन्तिम श्लोक सुनिए--- ध्रुवेण भां मुब-दर्शनाय पयुज्यमाना प्रियदर्शनेन । सा इष्ट इत्याननमुत्रमय्य हीसप्रकएठी कथमप्युवाच ॥ धूप-सारा अचल माना जाता है। अतएव यह सूचित करने के लिए कि हमारा-तुम्हारा विवाह-सम्बन्ध उसीकी तरह अचरा हो, प्रियदर्शन पति ने पार्यती से कहा कि प्रय तुम ज़रा ध्रुप को देख लो। यह सुनकर पाठयती ने अपना में जरा ऊपर की तरफ किया और लज्जा के कारण पद्धत धीमे स्वर में किसी तरह यह कहा कि “देख लिया। यहाँ

पर ":" अर्थात् "देख लिया", यह पद इस श्लोक की

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