पृष्ठ:कालिदास.djvu/२०८

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आत्मा है। यही इसका जीय है। इससे और इसके पहले के और भी कई कुमार-सम्भय के श्लोकों से यह जान पड़ता है कि कालिदास के समय में उपयर होने ही पर कन्यामों का वियाह होता था; और वियाह पद्धति, किया पर-गों में कहे गये पचनों के मतलव मोर महत्य को ये अच्छी तरह समझती थीं। यही नहीं, किन्तु मायश्यकता पड़ने पर विवाह-मपटप में सय के सामने ये बोलती मी थी। न ..1