पृष्ठ:कालिदास.djvu/२१७

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कालिदास की कविता में चित्र बनाने योग्य स्थल । ललाटबहारवारिबिन्दु- भीनां नियामेत्य वची बभाषे ॥ उस समय उसका रूप कैसा था, मुनिए । धन्या का एक सिरा तो जमीन पर था, दूसरे सिरे पर उसका हाथ था। शिरस्त्राण को सिर से उतारकर उसने दूसरे हाथ में ले लिया था। ललाट पर उसके पसीने के वूद छाये हुए थे। इस रूप में उसने अपनी डरी हुई प्रियतमा इन्दुमती से कहा- इतः परान कहाशस्त्रान् वैदर्भि परयानुसता मयासि। एवंविनायचेरितेन स्वं प्राध्यसे हस्तगता ममभिः ॥ हे पैदर्भि ! मेरे कहने से इन लोगों को तो तू ज़रा देख ले। ये घेचारे ऐसे हतयोर्य और सम्मोहित हो गये हैं कि एक यया भी इनके हाथ से हथियार छीन सकता है। ऐसे ही पराक्रम और युद्ध-कौशल के बल पर ये तुझे मेरे हाथ से छीन लेना चाहते हैं ! इस उक्ति को सुनकर इन्दुमती का डर छूट गया । और उसके मुख पर एक अपूर्व कान्ति आविर्भूत हुई। श्रज का पूर्वोक्त रूप और सामने खड़ी हुई उसी नव-विवाहिता पधू का पहले डरा हुमा, परन्तु पीछे से प्रसन्न हुशा, २०६