पृष्ठ:कालिदास.djvu/२३०

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कामिधाम]

है।यही गांगर कोसने राता r में पाचना करने निसय किलागला की जो स्थिति उम समय थी उस उल्लेग पर किया दी जा गुका है। परन्तु कीन्स कोम तुम भी गयर न पी। अतपय यह गुग्दशिया के लिए धन प्राप्त करने के इगई से, रघु के पास पहुंचा-

रा मुरमये वाशिम

पा निपापामाशांकः।

भुमार परामा मारा

प्रयुगामातिपिमानिधयः ।

जिस रयु के खजाने में, कुछ समय पहले, सोने के देर के ढेर मरे हुए थे उसके गाने-पीने के पात्र भी सोने ही के होंगे। इसमें परा सन्देह हो सकता है। परन्तु वह समय सुवर्ण-सञ्चय का न था। यह तो सारा का सारा दिया जा घुका था । अय रघु के पास पात्र थे मिट्टी के । वे यद्यपि चनकदार न थे, तथापि रघु का शरीर उसके प्रत्युज्ज्वल यश से ज़रूर सूप चमक रहा था। उसके शील-स्वभार का पया कहना है । अतिथियों का विशेष फरफे विद्वान् अतिथियों फा-सत्कार करना यह अपना यहुत बड़ा कर्तव्य समझता था। इस कारण, जय उसने उस येदशास्त्र-सम्पन्न कौत्स के जाने की रायर सुनी तब उन्हीं मिट्टी के पात्रों में अर्घ्य और

पूजा की सामग्री लेकर यह उठ खड़ा हुआ।

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