पृष्ठ:कालिदास.djvu/२४

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कालिदास ।] की अवस्था में अध्यापक मेफडानल का यह कहन शतक में विक्रमादित्य की स्थिति का प्रमाण न मिल कहानियों का फान्त हो गया, सर्यया अनुचित है। संवत् ही का पहला नाम मालव-संघत् है। ठीक इसका पता तो अमी तक लगा नही कि उसे किस था। यदि यह साबित हो जाता कि उसका प्रच और ही था, विषमादित्य न था, तो दिम विषय में अध्यापक महाशय ने जो राय दी है। युक्तिसङ्गत होती। [ २ ] कालिदास कप हुप, इसका पता ठीक ४ लगता। इस विषय में न तो कालिदास ही ने अप काय या नाटक में कुछ लिया और न किसी और ही कवि या प्रन्यकार ने कुछ लिया। प्राचीन भारत के को इतिहास से विशेष प्रेममया। इस लोक की अल्पकालिकमानकर ये उसे तुष्य रह से देखते थे। लोकही का उन्हें विशेष सयाल पा। इस कारण पार समस्यायों को दल कागा दी उन्होंने अपने जीय मपान उसममा। पंगासिनि में परिषों भोरर का हरित कोई गैलिलता धार दंगका इतिहाग नि