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पृष्ठ:कालिदास.djvu/२४१

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कालिदास की दिगाई हुई प्राचीन भारत की एक झलक । फरमान भर गया। प्रमण्य उमने यह सय धन फोरम पामने साफर हाझिर कर दिया। यह चौदह करोड़ में अधिक था। मयाल श सिर्फ चौदह करोड़ के लिए; न्तु उतना ही देना रघु के लिए कोई विशेर उदारता की तन थी। ससं गजा यह सारा का सारा धा फीम को । लगा। परन्तु यह मतलय मे अधिक यों लेता! उसने नकर चौदह करोड़ ले लिया । याकी सर पही पड़ा रहा। र यतलाइए उन दोनों में से फिी अधिक प्रशंसा का पात्र • मझना चाहिए-दाना रघु को या याचक कौन्स को ? की राजधानी, साकेत नगरी, के नियासियों ने तो उन नों को यरायर एक ही मा अभिनन्दनीय समझा -

जनाय के निवासिनाती

द्वापायभूनापभिनय पर।

- गुरुपदयापिकनिस्पृशोऽर्थी

नृगोऽभिभामादधिषपदश्च ।।

बहुत प्राचीन भारत की यह एक धुंधली सी लक है । उस ज़माने में विद्वत्ता की कितनी कदर थी, द्विान् अपना जीवन किस प्रकार निर्वाह करते थे; ये फहाँ हते थे, किस तरह रहते थे, और श खाते थे; राजा हनने प्रजा-पालक थे, कितने दानी थे, कितने धर्मनिष्ठ थे;

जाजन कितने सत्यनिष्ठ और राजाशा को फहाँतक

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