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पृष्ठ:कालिदास.djvu/२४०

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मैं तो मनुष्य है। गुरु की कृपा से चार अतर मैंने पढ़े है। अतपय ऐसे ममय में याचना करना मुझे मुना नदी । सारे संसार को जल-वृष्टि से प्राप्लायित ६ शरत्काल को प्राप्त होनेवाले रिक्त मंत्रों को, पतङ्ग-योनि उत्पन्न चातक भी, अपनी याचनाओं से तक नहीं करते"

राजा ने उत्तर दिया-"अच्छा, पतलाइए ।कौनसी चीज़ आप अपने गुरु को देना चाहते हैं चं केतनी देना चाहते हैं?

स पर फौत्स ने सय हाल कहा । सुनकर राजा ला-"कुछ चिन्ता नहीं । आप दो तीन दिन मेरी अग्नि- त्रिशाला में ठहरिए । मैं आपको अर्थ-सिद्धि के लिए टा करूंगा। मेरे पास से अापका विपाल-मनोरय .जाना रे लिए बड़े ही फलक को बात होगी। यह मैं नहीं हिता-यह मुझे असह्य होगा।

रघु के खजाने में कौड़ी न थी । चौदह करोड़ य कहाँ से आये ? राजा धर्मसङ्कट में पड़ा । अन्त । उने कुवेर पर चढ़ाई करके उतना द्रव्य प्राप्त करने क श्चय किया । उसने अपना शस्त्रास्त्र-पूर्ण रथ सजाया त:काल यात्रा करने के इरादे से रात को यह इस पर सोया । पर उसे प्रस्थान करने को ज़रूरत

। पड़ी । रात ही को. उसका खजाना अशर्फियों

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