पृष्ठ:कालिदास.djvu/३९

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[कालिदास का आविर्भाव-काल । इत्यादि और भी कितने ही श्लोकों में जो रवि, भानु, और भावान् आदि शब्द आये हैं उनसे प्रापने विक्रमा. दित्य के प्रादित्य का अर्थ लिया है और जहाँ 'विक्रम' और 'प्रताप' आदि शब्द आये हैं वहाँ उनसे 'विक्रम' का । इस तरह आपने सिद्ध किया है कि यशोधर्मा विक्रमादित्य को ही लक्ष्य करके कालिदास ने इन श्लिष्ट श्लोकों की रचना की है। अतपय ये उसीके समय में थे। उस जमाने का इतिहास और कालिदास के प्रन्थों की अन्तर्वती विशेषतायें इस मत को पुष्ट करती हैं। यही चैटर्जी महाशय की गवेप- णा का सारांश है। इन विद्वानों की राय में विक्रमादित्य कोई नाम-विशेष नहीं, यह एक उपाधि-मात्र थी। अश्वघोप के घुद्धचरित और कालिदास के कार्यों में जो समानता पाई जाती है उसके विषय में चैटर्जी महाशय का मत है कि दोनों कवियों के विचार लड़ गये हैं। अश्व- घोष ने कालिदास के कार्यो को देखने के अनन्तर अपना अन्य नहीं यनाया। दो कवियों के विचारों का लड़ जाना सम्भव है; पर पश यह भी सम्भव है कि एक के काव्य के पद के पद, यहाँ तक कि प्रायः श्लोकार्थ, तद्वत् दूसरे के दिमाग से निकल पड़ें१ प्रस्तु, इन बातों का निर्णय विद्वान् ही कर सकते हैं। हमें तो जो कुछ इस विषय में कहना या यह हम पहले ही कह चुके हैं।