पृष्ठ:कालिदास.djvu/३८

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कालिदास ।]
 

विद्यमान् न पा ? सम्भय है, कालिदास के समय में रहा हो और पीछे से नष्ट हो गया हो। कुछ भी हो, चैटजी महा- शय की सबसे नवीन और मनोरजक कल्पना यही है। प्रापकी राय में रघुवंश और कुमारसम्भव ५-७ ईसवी के पहले के नहीं।

चैटजी महोदय ने अपने मत को और भी कई बातों के आधार पर निश्चित किया है। कालिदास के कायों में ज्योतिष शास्त्र-सम्बन्धी जो उल्लेख है उनसे भी ओपने अपने मत की पुटि की है। कवि-कुल-गुरु शैव थे अथवा यो कहना चाहिये कि उनके अन्यों में शिवोपासना घोतक पद्य हैं । ऐतिहासिक खोजों से आपने यह सिद्ध किया है कि इस उपासना का प्रावल्य, बौद्धमत का हास होने पर छठी सदी में ही हुआ था । यह बात भी आपने अपने मत की पुप करनेवाली समझी है। आपकी सम्मति है कि रयु का दिग्विजय काल्पनिक है। यथार्थ में रघु-सम्बन्धिनी सारी पाते यशोधा विक्रमादित्य से ही सम्बन्ध रखती हैं । रघुवंश के-

(१) प्रतापस्तस्य भानोश्च युगपद् व्यानशे दिशः ।
(२) ततः प्रतस्थ कौवेरी भावानिव रघुद्धिशम् ॥
(३) सहस्रगुणमुत्सृष्टुमादत्त हि रसं रविः।
(४) मरोभरदनोत्कीलप्यताविकमलक्षणम् ॥
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