पृष्ठ:कालिदास.djvu/४२

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कालिदास।] डाकर भाण्डारकर, भाऊ दाजी आदि स्वदेशी विद्वान् । विद्या-विशारदों की कक्षा के अन्तर्गत है। इस अधि नीयता का कारण सुनिये- डाकर कोलहान के मन में, नाना कारणों से, विक्रमः। के विषय में एक कल्पना उत्पथ हुई। इस यात कोक दुए। उन्होंने एक लभ्या लेख लिया । यह "d. पेण्टिक्येरी" के अहॉ में लगातार प्रकाशित हुआ। उन्होंने यह सिद्ध करने की चेष्टा की किस संघर का माम इस समय है यह प्रारम्भ में न था। पहले यह मा। संवत् नाम से उसिसित होता था। मनेश शिला-है. और साघ्र-पत्रों के प्राधार पर उन्होंने यह दिखाया कि फेसात शतक के पहले, लेगी और पत्रों में, इस संयत् माम मासप-संयन् पाया जाता है। उनमें भक्ति "मालय गपस्थिन्या" पदका अयं उन्होंने लगाया-मालय-श गणना का प्रम। और यह भयं ठीक भी है। कोला की इस पेरणा का निश्कर्ष निकला किसान शनको मित्रम-पयन का नाम मिलता है, उसके पहले नही। पर तो पदी "मामशानां गलम्पिया' की दुहां गय कही अमातोरा मालय संवन् का माम शिक्रम-गन् गि -~- - --m ram mm कर दिया