पृष्ठ:कालिदास.djvu/४३

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[कालिदास का मायिर्माप-काल । धम्मा नाम का एक प्रतापी राजा मालये में राज्य करता था। उसका दूसरा नाम हर्षवर्धन मी था। उसने ए सपी में दूषों के राजा मिहिरफुल को मुलतान के पास कार में परा- स्त करके, हणों का पिलकुल ही तहस-नहस कर डाला । उसने उनके प्रभुत्य भीर पल का प्रायः समूल उन्मूलन कर दिया। इस जीत के कारण उसने विक्रमादित्य उपाधि प्रहण की। तयसे उसका माम हुमा हर्षवर्धन यिफ्रमादित्य । सी जीत की खुशी में उसने पुराने प्रचलित मालय-संपत् का नाम पदलकर अपनी उपाधि के अनुसार उसे विफम- संयत् कहे जाने की घोषणा दी। सापही उसने एक यात और भी की। उसने कहा, इस संयत् को ६०० वर्ष का पुराना मान लेना चाहिये, पयोकि नपे किया दो-तीन सौ पर्ष के पुराने संवत् का उतना प्रावर न होगा। इसलिए उसने ५४४ में ५६ जोड़कर ६०० किये । इस तरह उसने इस चिकम-संवत् की उत्पत्ति, सा के ५६ था ५७ वर्ष पहले, मान लेने की आशा लोगों को दी। इसी कल्पना के आधार पर विक्रमादित्य ईसा को छठी शताब्दी में हुए माने जाने लगे और उनके साथ महाकपि कालिदास भी चिंचकर ६०० घर्ष इधर आ पड़े। इस कल्पना के सम्बन्ध में आज तक अनेक लेख लिखे गये हैं। कोई इसे ठीक मानता है, कोई नहीं मानता। कोई इसके कुछ अंश को