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पृष्ठ:कालिदास.djvu/४५

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[कालिदास का श्राविर्भाव-काल । प्रतियाद हुए है, सय का कारण डाक्टर कीलहान का पूर्वोक्त लेख है। यदि घे यह साबित करने की चेदान करते कि मालय-संवत् का नाम पीछे से विक्रम संवत् हो गया तो पुरातत्ववेत्ता इस बात की खोज के लिए अाकाश-पाताल एफन कर देते कि इस संवत्सर का नाम किसने बदला, फों यइला और कर यदला? जिन लेखों और पयों के आधार पर डाक्टर साहब ने पूर्वोक्त. कल्पना की है उनके अस्तित्व और प्रामाणिकत्व के विषय में किसीको कुछ सन्देह नहीं । सन्देह इस बात पर है कि पुराने जमाने के शिलालेखों और तानपत्रों में "मालवानां गणस्थित्या" होने से ही क्या यह सिद्ध माना जा सकता है कि इस संवत् का कोई और नाम न था ? इसका कोई प्रमाण नहीं कि जिस समय के ये लेख और पत्र है उस समय के कोई और ऐसे लेख या पत्र कहीं छिपे हुए नहीं पड़े, जिनमें यही संवत् विक्रम संवत् के नाम से रमि- पित हो । इस देश की सारी पृथ्वी तो न डाली गई नहीं और न सारे पुराने मकान, मन्दिर, खंडहर धादिही हूँद डाले गये। इस संयत् के प्रचारक मालय-देशवासी हो सकते हैं। पर इससे का यह अर्थ निकाला जा सकता है फि मागवे के किसी एक मनुष्य ने, किसी घटना विशेर के उपलक्ष्य में, यह संपत् नहीं चलाया ! यह कोई असम्भव पात तो मालूम होती नही, देश-यासियों के नाम से प्रसिद्ध