पृष्ठ:कालिदास.djvu/४९

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[कालिदास का प्राविय-पा। डाकर भाण्डारकर कहते है कि गुप्तवंशी रागा प्रथम चन्द्रगुप्त ने पहले-पहल अपना नाम विमामादित्य रपया और उसीने मालय-संवत् का नाम, अपने नामानुसाद, घदलकर विक्रम संवत् कर दिया । परन्तु इस बात पर विश्वास नहीं होता । इसलिए कि गुप्तवंशी राजाओं ने अपना संवत्, प्रथम चन्द्रगुप्त के यद्भुत पहले ही, चला दिया था। अतएव अपने पूर्वजों के चलाये हुए संवत् का तिरस्कार करके मालव-देश के संवत् को चन्द्रगुप्त क्यों अपने नाम से चलाने लगा? फिर एक यात और भी है। चन्द्र- गुप्त के सौ वर्ष पीछे के तांत्र पत्रों में भी मालव-संयत फा उल्लेख मिलता है। यदि चन्द्रगुप्त उसका नाम बदल देता तो फिर फयों कोई मालव-संवत् का उल्लेख करता? अतरय इस तरह की कल्पना विश्वास-योग्य नहीं। यशोधर्मा का जो एक शासनपत्र मिला है उसमें उस बेचारे ने न तो कोई संवत् चलाने की यात कही है, न विक्रमादित्य-उपाधि ग्रहण करने ही की बात कही है, और न मालय संवत् का नाम बदलने ही की चर्चा की है। उसने सिर्फ इतनी दात कही है कि मेरे राज्य का विस्तार गुप्त- नरेशों के राज्य-विस्तार से भी अधिक है। यह गुप्त-नरेशों के प्रमुच से अपने प्रभुत्व को यहुत अधिक समझता था । इसीलिए उसने इस शामनपत्र दाग यह सूचित किया है