लिदास ।] अव मेरा राज्य गुप्तों के राज्य से कम नहीं, प्रत्युत अधिक । अर्थात् अब मैं उनसे भी बड़ा राजा है। यदि उसने लव-संवत् का नाम विक्रम संवत् में यदला होता, तो यह । घात को भी जरूर कहता कि गुप्तौ की तरह मैंने भी ग्ना संवत् चलायो है। परन्तु उसने यह कुछ भी नहीं या। अतएव यह उक्ति, यह तर्कना, यह फल्पना भी तरह निःसार जान पड़ती है। यहाँ तक जिन यातों का विचार हुआ उससे यही नूम होता है कि ईमा के ५७ वर्ष पहले निममादित्य नाम कोई राजा जरूर था। उसीने विक्रम-रांवत् चलाया। मालय-देश का गजा था। इसलिए शुरू शुरू के शिला. और माघ्रपत्रों में यह मन माराय-संयत् के नाम से यभिहित हुआ है। यय यदि उस समय विकमादित्य के लन्य का कोई प्रमाल मिला आप तो उसके विषय में की पद्धत मीशकाओं के लिए जगह ही गई। पुरातस्वयत्ताला के पूर्व पदले शक में किसी मादित्य का होना मानने में पेताह मनोय करते है। लिए कि उस ममय काम को ऐसा मिमा दी मिला है नमें गला का नाम हो, नको शिला-सव ही मिना मको नाप्रपत्रही मिला है। पातु उनकी यह नित होनिय। मकामान प्रापान इतिहास में M
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