सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कालिदास.djvu/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[कालिदास का प्राविर्भाव-फाल । नामधारी, राजा की सभा के सभासद थे। अपने रूपकों में से एक का नाम विक्रमोर्वशीय रखना और उसकी प्रस्तावना में यह लिखना कि-"अनुत्सेकः खनु विक्रमालकार-इस बात की पुटि करता है कि राजा विक्रम से कालिदास का कुछ सम्बन्ध अवश्य था। जनश्रुति भी यही कहती है। रामचरित नामक फाय्य का- ख्याति कामपि कालिदासकवयो नीताःशकारातिना। इत्यादि श्लोक भी इसकी पुष्टि करता है। अतएव जबतक इस कल्पना के विरुद्ध कोई प्रमाण न मिले तबतक इसे स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं। अच्छा तो अब यह देखना है कि किस विक्रम के समय में कालिदास विद्यमान थे। ईसा के पहले शतक में विक्रम नाम का कोई ऐतिहासिक राजा नहीं हुआ। उसके नाम से सो संवत् चलता है यह पहले मालवगणस्थिन्यान्द कहलाता था । महाराज यशोधर्माके यहुत काल पीछे उसका माम विक्रम संवत् हुवा। गपुरतमहोदधि के कर्ता पर्द्ध- मान् पहले प्रन्यकार हैं जिन्होंने विक्रम संवत् का उल्लेख किया। यथा- मादसौर में एक संम् का पुराना सेरा है। इसमें मिता है- मासा गधिया ने एनामुष्य-सारित