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पृष्ठ:कालिदास.djvu/७४

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कामिदाता पम्पा दिवाई और अन्त के प्रयान् उपास सग, मैं तो राजा अग्निवर्ण की कामुकता और मृत्यु का यन करके रघु के यंश की प्रायः समाप्ति हो सो कर दी है। अतश्य यह सिद्धमाय है कि कालिदास ईसवी सन् के चाये शतक के अन्त और पांच शतक के प्रारम्भ में विद्यमान थे। अशोक के अनन्तर इसो समग भारतय गौरव-वृद्धि हुई। मेष्ठ, सुयाधु, भ.स प्रादि महाकवि, दिङ नाग, उद्योतकर श्रादि दानिक और प्रार्यभह, घराद- मिहिर अादि वैज्ञानिक भी इसी समय हुए। उस समय भारत में विद्योजति फा जो प्रादुर्भाव हुआ यह कोई एक हजार वर्ष तक पा रहा। तेरहवें शतक में राजा लक्ष्मणसेन के राज्य का अवसान होने पर उसका भी अवसान हो गया। सितम्बर १९१२ । पहला के "गृहस्प" नामक मासिक-पत्र में एक लेख प्रकाशित हुआ है। उसमें कालिदास के समय का निरूपए है, उसे श्रीमनोरजन घोर ने लिखा है। इस लेख में लेखक.ने कुछ नई युक्तियाँ दी हैं। लेस का सारांश नीवे दिया जाता है। उससे पाठक उल्लिषित युक्तियों के गौरव लायय का विचार स्वयं कर सकेंगे। ७०