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पृष्ठ:कालिदास.djvu/७८

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कालिदास। ____पण्डितों का विश्वास है कि कालिदास विममा- दित्य के समय में थे। यह प्रवाद निर्मल नहीं। कालिदास के एक नाटक का नाम है विक्रमोर्वशी। उसमें पुरुरपा और उर्वशी की कथा है। जान पड़ता है, इस नाटफ के नाम में 'विमाम' शब-द्वारा कधि ने विप्रमादित्य-उपाधि- धारी राकाओं ही की तरफ इशारा किया है। रिफमादित्य- उपाधिधारी राजाओं का पता गुप्त-बंशीय राजाओं में ही पहले पहल मिलता है। उन राजाओं के पूर्व भी विप्रमादित्य उपाधिधारी कोई राजा था, इसका पता इतिहास में नहीं। कालिदास ने मेवदूत में उज्जयिनी का जैसा प्रया घर्णन किया है उससे जान पड़ता है कि ये अयश्य उ- पिनी गये थे। पिना देगे ऐसा अच्छा और पंसा गया यर्णन नही किया जा सकता। अय देपिए, यिममादिस्य. उपाधिधारी कोई गुमयंशीय राजा उमयिनी को गया था या नहीं। गुम-राजाओं के इतिहास में बात होता है कि द्वितीय चन्द्रगुप्त की आधि विमामादिप थी। अपने पत्रपपंशीय शम्मपनि गद्रसिंह को परास्त करके गालपे का राज्य उसमे दोन लिया था और उसपिनी के सिंहासन पर भी चार गुना था। उदयगिरि नामक गुफा में गरें चन्द्रगुम का जो लेम उरकी है यहाग पंनिसागर पटना पा मादय रहा है। फीट गाइर की गंह की दु.