कालिदाम ।। परिपुष्ट होती है। उसने लिगा है कि महाराज घिडोया के राज्यकाल के प्रथम यर्ग, अयात् ५२० ईसवी में, वह गान्धार-देश में पाया था। यहाँ उसने दो पीढ़ियों से राज्य करते हुए पेया अर्थात् श्वेत-वर्ण के हूणों के यंगधरों, को देना था। प्रीस के रहनेवाले भारत-यामी कासमस ( Cosmus) ने, ५२२ ईसवी में, लिया है कि उस समय भारत के उत्तर और पधिम में हुए पजा मोलास पड़े समा. रोह के साथ राज करता था। इन बातों से हम सहज में ही अनुमान कर सकते हैं कि रघुवंश के चौये सर्ग में, ४६५ ईसवी के कुछ याद की और ५२२ ईसवी के कुछ पहले को, घटनावलियों का ही वर्णन है। कालिदास के मन में गुप्त राजाओं के कथा-वर्णन की जो अभिलारा थी उसे उन्होंने रघु और अज की कथाओं के यहाने पूर्ण किया है। “स गुप्तमूलमत्यन्तः", "तस्य गोप्तुर्गुणोदयम्' और छठे सर्ग के चौथे श्लोक के, "मयूरपृष्ठाचयिणा गुहेन" नादि पद इस यात के दृढ़ और स्पष्ट प्रमाण हैं। क्योंकि गुप्त-राजाओं के कुल-देवता स्वामि-कार्तिक थे और उनके चांदी के सिको की पीठ पर मयूर हो का वित रहता था। अतएव यह निश्चित समझिए कि रघुवंश में उल्लिखित यवनों, हों और पारसीकों का अवस्थान केवल पांचवीं शताब्दी में सम्भव था। महाभारत और पुरानो
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