कालिदास !] अनुमान की बात सुन लीजिए। आपका नाम है-पण्डित रामचन्द्र विनायक पटयर्धन, पी० ए०, एल० एल० पी०। आपका लेख "चित्र-मय जगत्" में, कुछ दिन हुए, निकला है। उसके कुछ अंश का प्राशय यह है- मेघदूत के (१) "श्रागढस्य प्रथमदिपसे" (२) "प्रत्यासन्ने नभसि"और (३) “शापान्तो मे भुजगशयना"- इन तीन श्लोकों में आपाद रम्भ, नभोमास और देवोत्थानी एकादशी का उल्लेख है। इनके आधार पर पटयर्धन महारा ने ज्योतिपिक गराना की है। यह गणना अधिकांश पाठको की समझ में न आयेगी, इस कारण इसे हम पो देते हैं। पटपर्धनजी का निगमन यह है कि मेघदूत की रचना के समय सूर्य जप पुष्प-नक्षत्र के प्रथम परण में होता था तप ममोमाम प्रधान सारन-क-मंगालि (Suinmer Solne- tice) का मागम होता था। पर भय यह मादाम में होता है। अर्थात् ममामाम अब २६-३१ अंश पीछे दरार दोता है। इसमे पटयधनती में गणित कर यह रिवाया १किपमान स्थिति को उपस्थित होने के लिए १०० पाहिए। मतलब यह कि कालिदाग कोए कम काम इतने प र हुए । एपंग चाय गर्ग में एक नाग है- "श्रममावादमा पुग्मोनरी मगामां भापार पर भी गणित कर मारने प्रायः यही पान गिरे।
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