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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१३२

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काव्य-निर्णय ६७ जाती है । अस्तु, रसलीन जी ने अपने 'रस प्रबोध-ग्रंथ' में भावोदय के साथ- "भावन की संधि-उदै-सांत-सबल प्रौढोक्ति, हरष-भाव, संका-भाव की संधि, त्रास- भाव-रोस-भाव की बिधि, बीड़ा-भाव-प्रीति-भाव की विधि, गरबभावोदय,मान-भाव की सांति, अंतरिज भावोदय सांति, सबल-लच्छन, धृतिभाव की प्रौढोक्ति, सुकीया बिदै भाव की प्रौढोक्ति" श्रादि का वर्णन किया है, इनके सुंदर उदाहरण दिये हैं। दो उदाहरण - धृति-भाव की प्रौढोक्ति और स्वकीया-विषै-भाव की प्रौढोक्ति क्रमशः जैसे- "पीतम बँसुरी की सरस, सब जगते करि ध्यान । अधर-लगें हरि के जियत, बिछुरें बिछुरें प्रॉन ॥ बिछुड़े पिय सपने निरखि, तिय विदेस अनुमानि । चोंकि परी, थैहरी खरी, पुरुष दूसरौ जाँनि ॥" -र० प्र० (रसलीन) पृ० १३७ अथ भाव-उदै उदाहरन 'सवैया' जथा- देखिरी, देखि, अली-सँग जात' धों, कोंन है, का घर में ठहराति है। भाँनन-मोरिके. नेनन -जोरिकें. अबै भई ओझल वो मुसिकाति है। 'दास' जू जा मुख-जोति लखें ते, सुधाधर-जोति खरी सकुचाति है। आगि-लिऐं चली जाति सु मेरे हिए-विच आगि दिएँ चली जाति है। वि०-भावोदय के उदाहरण स्वरूप श्री रसखान-निर्मित यह सवैया भी बड़ा सुंदर है, यथा- "जा दिन ते निरख्यौ नए-नंदन, कॉन तजी, घर-बंधन छून्यौ। चार बिलोनि कीन्हीं सुमार, सँम्हार, गई मन मार ने लूटयौ । सागर को सरिता जिमि धावै, न रोकी रहै कुल को पुल टूट्यौ । मत भयो मन संग फिर, 'रसखाँन' सरूप अमीरस घूटयो। अथ भाव-संधि-उदाहरन दोहा'- कंस-दलॅन को दर उत, इत राधा-हित जोर। चलि-रहि सके न स्याँम-चित, ऐचि लगी दुहुँ भोर ।। ____पा०-१. (प्र०) (३०) नाइ...। २. (प्र०) बतरात । ३. (प्र०) (०) नेनन जोरि अब गई...। ४.(प्र०) .... () है...। ५. (०) चलि...!

  • , र० मी० (२०) २४१ ।। र० मी० (२०) १४६ ।