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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१४

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दासजी कृत निर्विवाद विशिष्ट प्रय-रचनाएँ इस प्रकार कही जा सकती हैं, वे रचना-क्रम के अनुसार निम्नलिखित हैं:

१. रस-सारांश (१० सं०--१७३१ वि०)। २. नाम प्रकाश-संस्कृत,'अमरकोश' का अनुवाद (र०सं०-१७६५ वि०) ।।३ छंदार्णव पिंगल (२०-सं०-१७६६ वि०)। ४. काव्य-निर्णय (१० स०-१८०७ वि०) २।५. शृंगार-निर्णय (र० सं०-१८०७ वि०)३।।

इनके अतिरिक्त आप (दासजी) कृत "विष्णुपुराण" भाषा और कहा जाता है, जो सं० १७८७ वि० के लगभग रचा गया था तथा नवलकिशोर प्रेस लखनऊ से सन् १८४६ ई० में छपकर प्रकाशित हुआ था। खोजरिपोर्ट (स०१६.६-४० काशो नागरी-प्रचारिणी सभा) जो अभी प्रकाशित नहीं हुई है,के अनुसार 'शतरंज-शतिका" आप कृत और कही गयी है । यह १० पृष्ठ की है तथा राजा साहिब प्रतापगढ़ (अवध) के सरस्वती-भंडार में सुरक्षित है। तेरिज रस-सारांश और तेरिज काव्य-निर्णय भी आपकी ही रचनाएँ हैं,पर ये पृथक ग्रंथ नहीं, श्राप कृत रस-सारांश और काव्य-निर्णय में प्रयुक्त केवल उदाहरण-रहित लक्षणों के संग्रह हैं । ये पुस्तके भी राना साहिब प्रतापगढ़ (अवध) के सरस्वती-भंडार में सुरक्षित हैं । उपयुक्त ग्रंथों के अतिरिक्त नागरी प्रचारिणी सभा काशी की खोज-रिपोर्टी में तथा किन्ही-किन्हीं हिंदी के इतिहास ग्रंथों में आपकृत निम्नलिखित रचनाएँ और लिखी मिलती हैं,जैसे :

१. छद-प्रकाश,२. बाग-बहार,३. राग-निर्णय,४. ब्रजमाहात्म्य-चंद्रिका,५.पंथपारख्या, ६ वर्ण-निर्णय, रघुनाथ नाटक इत्यादि।"

छंद-प्रकाश का दास-कृत उल्लेख ना० प्र० स० काशी की 'खोजरिपोर्ट (सं० १६०३ पृ०-३२) में किया हुआ मिलता है। बाद में इसका उल्लेख मिश्र-बंधुत्रों ने भी अपने 'विनोद' में, पं० रामचंद्र शुक्ल ने अपने 'हिंदी-साहित्य के इतिहास' में, चतुरसेन शास्त्री ने अपने 'हिंदी भाषा और साहित्य

१. सौ सौ पिन्चान में, अगहन को सित पच्छ । तेरस, मंगल को भयो, 'नाम-प्रकास' प्रतच्छ ॥ २. भट्ठारह सौ तीन को, संवत मास्विनमास । प्रथं काव्य-निरनै रच्यो, विजै दसमि दिन दास ॥ ३. संबत विक्रम भूप को, भट्ठारह सौ सात । . माधव सुदि तेरस गुरौ, भरबर-थल विख्यात ॥ ४. विनोद, पृ०-६३२, (द्वितीय भाग)। ५. हिन्दी साहित्य का इतिहास,पु०-३८५।