पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१५१

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काव्य-निर्णय प्रथम प्ररथांतरसंक्रमित धुनि कथन जथा- अर्थ बनत' ऐसें-हिँ जहँ, नाहिर ब्यंग की चाह । ब्यंग निकार' तोहू करें चमतकार कवि-नाह। वि०-"जैसा दासजी ने ऊपर के दोहे में कहा है कि "अविवक्षितवाच्य- ध्वनि' के दो भेद 'श्रांतरसंक्रमित' और 'अर्थातरतिरस्कृति' (अत्यंततिर- स्कृति) होते हैं । अांतरसंक्रमित ध्वनि उसे कहते हैं जहाँ वाच्यार्थ अर्थातर में संक्रमण करे-बदले, अर्थात् जहाँ शब्द का अर्थ प्रकरण के अनुसार अपने अभिधेयार्थ को त्याग कर अपने विशेष स्वरूप अांतर में चला जाय । इसी प्रकार जहाँ वाच्यार्थ का पूर्ण तिरस्कार किया जाय वहाँ 'अर्थातरतिरस्कृति' का 'अत्यंततिरस्कृतिवाच्य ध्वनि' कहते हैं।" पुनः दोहा' जथा- अर्थातर संक्रमित" सो बाच्य जु ब्यंग अतूल । गृढ़ ब्यंग या में सही होत लच्छनाँ-मूल ।। अस्य उदाहरन 'दोहा' जथा- सुमधु-प्याइ पोतँम कहयौ , प्रिया पिय-हि सुख-मूरि । 'दास' होइ ता समे में, सब इंद्रिय दुख-दुरि ।। अस्य तिलक इहाँ मधु छीबे ते तुचा कों सुख होइ, पीबे ते जीभ को सुख होइ, बोल सुने ते कॉनन को सुख होइ, देखिये ते हगन को सुख होइ, अरु गंध ते नॉक को सुख होइ यो पाँचों इद्रिय को दुख-दूरि होति है जो केवल "इंद्रिय-दुख-दूरि" ते अधी- तरसंक्रमित धुनि सों जान्यों जात है ॥ अरर्थातर तिरसकृति वाच्य धुनि जथा- है 'अरर्थातर' तिरसकृति', निपट तर्ज धुनि होइ । समें लच्छ ते पाईऐ, मुख्य-अरथ को गोइ॥ पा०-१. (प्र०) (३०) अर्थ ऐस.ही बनत जह, । (सं० प्र०) अर्थ ऐसें बनतु जहँ, नहीं...। २.(प्र०) (०) नहीं...। ३. (प्र०-३) निकरि...1(प्र०-३) करै, । ५. (प्र०)... संक्रमित-बाच्य.... ६. (भा०जी०) (३०) वा में कही । ७. (भा० जी०) (०) (प्र० मु०) कहै,.... प. (प्र० मु०)...ताही समय, । ६. (प्र० मु०) (०) अत्यंत...। १०. (स० प्र०) (प्र०) (प्र० मु०) अत्यंत.... (ब)...अर्थाततरसकृति । (प्र०).... तिरसकृति... ११. (२०) रसमय लच्छन...।