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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१५६

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काव्य-निर्णय १२१ पुनः उदाहरन 'कवित्त' जथा- जाँनि के सहेट गई कुजन-मिलँन' उन्हें,' जाँन्यों ना सहेट के बदैया ब्रजराज कों। तूं नों"लखि सर्दैन सिंगारौ ज्यों अँगारौ भयो, सुख देनवारौ भयौ दुखद समाज को ।। 'दास' सुखकंद मंद सीतल पबन भयौ, तँन ते जलँन उत कबन इलाज कों । बाल के बिलापन बियोगानल तापन कों ___ लाज भई मुकत, मुकत, भई लाजकों ॥ * अस्य तिलक इहाँ सब्द-सक्ति ते अन्योक्ति-उपमालंकार करिके अन्योन्यालंकार व्यंग सों जयासंख्या है। वि०-दासजी की मान्यतानुसार यह छंद विप्रलब्धा नायिका का भी उदाहरण है। विप्रलब्धा-नायिका, केलि-स्थान में प्रिय को न पाकर व्याकुल होनेवाली को कहते है, यथा- लखि सूनों संकेत जो पिय-बिन अति भकुलाइ । ताहि 'विप्रलब्धा' कहैं, सुकबिन के समुदाइ । --म० मं० (अजान ) पृ० ६६ और दासजी कहते हैं- "मिलन-मास दे पति छला, औरहिं रति है जाइ । विप्रलब्ध सो दुखिखता, पर-संभोग सुहाइ । कितु सर्व-संमत-मत 'अजान' वाला ही है। श्रतएव ब्रजभाषा-नायिका-भेद के प्राचार्यों ने इसे-मुग्धा, प्रौढा, परकीया और गणिका में भी माना है। इन श्राचार्यों के अनुसार यह छंद 'मुग्धा-विप्रलब्धा' नायिका का उदाहरण है। पा०-१. (प्र०) मिलै के लिऐ ... | २. ( भा० जी०) (३०) तुम्हें । ३ (३०) को... | ४. (शृ नि०) से । ५.प्र.) सने" । ६. (३०) सिंगार ज्यों अंगार भयो । ( नि०) सिंगार ज्यों अँगार भए, सुख देंन वारे भए दुखद समाज से। ७. [भू०नि०]... पन भए, तन ते सु बाल उपजावन इलाज से। ५. [३०] बियोग लतान को...। [भू. नि0].. बियोग-तैन-तापन, सो लाज भई मुकत, मुकत भए लाज से । ६. [वे ०] भन्योन्यालकार, कामलिंगालंकार, यथासंख्यालंकार ।

  • ०नि० [ दास ] पृ० ६५१,६३ । संमेलन की प्रति में यह बंद नहीं है।