पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/१७

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उक्त गजट में इसका मुद्रण स्थान-“बी० एल० पावगी हितचिंतक प्रेस बनारस' बतलाया गया है । पुस्तक कहीं देखने में नहीं पायी, अतएव इसका दास जी कृत होने-न होने के प्रति विचार नहीं किया जा सकता।

दास जी की रचनाओं का यह संक्षिा लेखा-जोखा है, जिसके प्रति आदि से लेकर अंत तक सभी इतिहास-प्रय लेखकों में (दासजी कृत प्रथ-संख्या के लिये ) मतभेद रहा है। श्री शिवसिंह सेंगरे से लेकर आधुनिक इतिहासकार चतुरसेन शास्त्री तक ने अपनी-अपनी मनमानी-घरजानी की है । यदि इन सब इतिहासकारों के उल्लेखों पर गहरी दृष्टि से विचार किया जाय तो श्री भिखारी दास कृत ग्रंथ संख्या सात ठहरती है और उनका उल्लेख प्रथम में हो चुका है तथा उसकी ताईद 'प्रताप सोमवंशावली के रचयिता कवि 'द्विज वल्देव' ने की है, यथा :

"इनके रचे ग्रंथ ए जो हैं, अंकित हिंदूपति-जस सो हैं। प्रथम काव्य-निरने को जानों, पुनि सिंगार-निरनयर तहँ ठाँनों ॥ छंदानव' अरु बिस्नु पुराना, रस-सारांस५ प्रथ जग-जाना । अमरकोस' अरु सतरंज सतिका, रची लहन हित मोद सुमतिका ॥ नृपति अजीतसिंघ खुजवाई, सचित कियौ भमित सुख पाई।

दासजी का मृत्यु-समय (संबत) भी अनिश्चित-सा है, फिर भी ब्रज-भाषा-साहित्य से रुचि रखने वाले सज्जन विशेषों का कहना है कि "दासजी की मृत्यु भभुया' जिला पारा, मानभूमि विहार में हुई थी। अस्तु,भभुश्रा में तो नहीं, आरा शहर में आपके नाम से एक मंदिर अब भी है, जहां प्रति वर्ष वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को मेला लगता है तथा आपकी कविताओं का पाठ भी किया जाता है, किंतु यह सब ज्ञात होते हुए भी आपको मृत्यु का समय अभी अज्ञात-ही है। यदि आपके प्रथ-निर्माण-संबतों को ध्यान में रखते हुए इस संबंध में कुछ कहा जा सकता है तो कहना होगा कि आप (दासजी) की शारीरिक मृत्यु "शृगार-निर्णय की रचना (सं० १८०७ वि०) के कुछ वर्ष बाद ही हुई होगी, यह अति निश्चय है,'क्योंकि इसके आगे आप-द्वारा रची गई फिर कोई रचना अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। हाँ, साहित्यिक यशः-शरीर अजर-अमर है, यथा:

"जयंति ते सुकृति नो रससिद्धाः कवीश्वराः। नास्ति येषां यशः काये जरामरणजं भयम् ॥"--भहरि, - - १. आचार्य भिखारीदास,ले०-डा.नारायणदास खना,एम.ए.,प्र.लखनऊ विश्वविद्यालय, सं०-२०१२ वि०,पृ०.२५ । .