पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२६२

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काव्य-निर्णय २२७ अर्थात् , सदृश वस्तु के अवलोकन तथा चिंतनादि से पूर्वानुभूत स्मरण को उक्त दशा कहते हैं। अतएव इप स्मृति वा सुमरन संचारी भाव का सुमरन ( स्मरण वा स्मृति) अलंकार से भेद प्रकट करते हुए संस्कृत-शास्त्रकारों ने कहा है कि "जब सदृश-वस्तु को देख वा अनुभव कर दूसरो वैसी-ही वस्तु का स्मरण हो पाए तब वहाँ स्मरण-अलंकार है और यदि किसी अन्य कारणों - चिंतन-उद्वगादि से वैसा स्मरण हो तो वहाँ यह अलंकार न होकर 'स्मृति' वा "सुमरन'-भाव ही कहा जायगा। यह कथन युक्ति-युक्त है, ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि स्थायी-भावों के रहते हुए विशेष कारणों से उत्पन्न तथा विलीन होने वाले - अलसता, जड़ता, लज्जा, हर्ष, स्मृति-आदि ही 'व्यभिचारी' या 'संचारी'-भाव कहलाते हैं, जो रसात्मक वाक्यों से विकसित होते हैं। जैसे कहा जाय कि "मैं उसके उन मलज्ज. चंचल एवं आनंद-विस्फारित कटाक्ष-पूर्ण नेत्रों की याद किया करता हूँ, जिनसे वह औरों की दृष्टि-बचाकर ( मुझे ) देखा करती थी।" तब यहां-केवल वियोग-जन्य 'स्मरण'-भाव-ही कहा जायगा, अलंकार नहीं। क्योंकि यह स्मरण किसी कारण-विशेष-वश एकाएक उबुद्ध नहीं हुआ है, वह तो हृयस्थ भाव को एकाएक प्रकट कर रहा है। इसलिये बिना कारण किसी का एकाएक -सुमरन करना, याद आ जाना वा करना 'सुमरन' ( स्मृति ) भाव- ही है, अलंकार नहीं । अलंकार तो उक्ति-वैचित्र्य वा वर्णन शैली की विचित्रता द्वारा सरस भाव-पूर्ण वाक्यों को विशेष अलंकृत ( चमत्कृत ) करता है, क्योंकि उसका कार्य रस-भावादि पूर्ण वाक्यों के पुष्ट हो जाने पर-हो पड़ता है। अस्तु, उपरोक्त उदाहरण को यदि इस प्रकार कहा जाय कि "इस नाटक की नायिका के वैसे-ही ठीक हाव-भाव को देख कर मुझे पूर्व-दृष्टा नायिका के उन सलज्ज, चंचल और श्रानंद-विस्फारित कटाक्षपूर्ण नेत्रों को बार-बार याद आ रही है, जिनसे वह औरों की दृष्टि बचाकर (मुझे) देखा करती थी" तो यहाँ वक्ता का हृदयस्थ-भाव उक्त वाक्यों द्वारा नटी के पूर्व दृष्टा नायिका की भांति वैसे-ही आचरणों को देख कर उलित हो उठने के कारण जो एकाएक प्रकट हो रहा है, अतः वह यहाँ 'सुमरन' ( स्मृति ) भाव न होकर अलंकार बन गया है। इसकी विवेचना यहाँ केवल इतना कह देने पर-ही अवलंबित नहीं है कि इन वाक्यों में सुमन- स्मृति भाव है अथवा अलंकार, अपितु सदृश वस्तु के अनुभव न होने पर जब वैसी-ही-तद्प वस्तु का स्मरण होजाय तब स्मरण ( सुमरन ) अलंकार है और किसी अन्य प्रकार से सुमरन होने पर वह 'भाव' है । अतएव काव्य के तद्-तद् स्थानों पर देखना होया कि यह सुमन बिना किसी अलंकरण के आया है, अथवा कुब अति-मैचित्य के द्वारा, और तब निश्चय करना होगा कि वह अलंकार है