पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२६८

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काव्य-निर्णय २३६ शन उनका सुन सभी शुक- तरु से उड़ गया, पथिक भी यह देख कौतुक फिर गया हँसता हुआ॥ . . इन प्राचार्यों ने भ्रम की माला और ध्वनि भी मानी है और उनके प्रथक्- प्रथक उदाहरण भी दिये हैं। भ्रमालंकार संयुक्त विहारीलाल का यह दोहा भी देखने-सुनने लायक है, यथा- "अंत मरेंगे, चलि जरें, चढ़ि पलास की डार । फिरि न मरें मिलि है भनी, ए निरधूम अंगार ॥" अथ संदेहालंकार उदाहरन जथा- लखें वहि टोल में नौल-बधू, इक साँस भए हग मेरे पडोल । कहों काट खींन को डोलनों डोल, कैपीन-नितंब-उरोज की तोल ।। सराँहों अलौकिक बोल अमोल, कै भाँनद-कौल' में रंग लॅमोल । कपोल सराँहों के नील-निचोल, किधों बिब-लोचन लोल कपोल - पुनः उदाहरन जथा- तँम-दुख हारिन रबि-किरनि, सीतल-कारन चंद । बिरह-कतल-काती किधों, पाती ऑनद-कंद ॥ पुनः उदाहरन जथा- चारु मुख-चंद को चढ़ायौ बिधि किंसुक कै सुकन' यों बिंबाधर' लालच उमंग है। नेह-उपजावन अतूल तिल-फूल किधों, पानिप-सरोबर की उरमी उतंग है। 'दास' मनमथ साही कंचन-सुराही मुख, ___बंस-जुत पॉन' की कै खाँन सुभ रंग है। एक-ही में तीनों पुर ईस को है अंस किधों, नाँक नबला की सुर-धाम सुर-संग है। पा०-१. (का०, (३०) लखै...। (प्र०) लखे...| २. (३०) दास...। (प्र०), मृदुहास में मेरी भयो मन डोल । ३. (३०) की...। (प्र०) कि...। ४ (०) सराहूँ...। ५. (प्र०) कोष ६. (३०) सराहूँ...। ७. (३०) लोलक-लोल या लोल कलोल | (का०) कि दृग.... ६.(३०) किंकन, किसुक यो...। १०.(न० सि० सं०) सुक नया बिंबधर...। ११. ( नि०)बिंबा- फल...। १३. (३०) रमि...। १३. (३०) पालकी कि पाल सुभ...। (प्र०), बाँसजुत पालका की पाल सुम...I (न० सि० सं०) स-जुत पालकी के पाल.... ० म० (पो०) पृ०१२४ । 9. नि० (भि०) पृ० १५,५१ । न. सि० सं०, पृ. १०६, ३५५ ।