पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/२७५

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काव्य निर्णय है पसु-जाति की' कॉमदुहा, कलपद्म बापुरौ काठ निदान' है। भौर में काहि कहों प्रभु दूसरौ, दॉन-कथान में न तोहि समान है। वि.-"इन दोनों-दोहा और सवैया में भी उपमान की हीनता का-ही वर्णन है । पद्माकर जो ने भी अपने पद्माभरण में ऐसा हो कहा है - "वाको जस कित-हूँ न जाग्यौ परतच्छ पै ही, याको धाँम-धाम फैलि फैलि रौ जस्ट है। पाको सुन्यों एक देव-लोक में दरस होत, या की तो दिखात तिहुँ लोक में दरस है ॥ कहै 'पदमौकर' सु दॉन वो माँग देति, ये तो बिन माँगें-ही देति सरबस है। पाछौ अभिराम कहे परन सकल - कॉम, ___गंगा जू को नॉम कॉम-तरु ते सरस है ॥" यहां व्यतिरेक-छटा भी दरसनीय है--पठनीय है ।" सब्द-सक्ति ते उदाहरन जथा- आबै जित' पानिप-समूह सरसात तित, माँनों जलजात सो तौ न्याइ-ही फुमति है। 'दास' जा' दरप. कों दरप-कंदरप सोहै, दरपॅन-सम ठाँनें कैसें बात ये सति है। और'• अबलान में राधिका के ऑनन को, बराबरी को बल कहैं सुकवि कूर अति है। पैए निस- बासर कलंक'२ अंक जाके तन, बरने मयंक कबिताई को अपति है। 3 ।।* पा०-१.(का०) को . 1 २. (का०) (३०) (प्र०) प्रमान हैं। ३. (३०) (प्र०)-कथान में तोह समान...। ४.(प्र०) भावत...। ५. (V०नि०)(न०सि० सं० ) माने...। ६.(३०)(प्र.) (०नि०)(न: सि० सं० ) होइ । ७. का०) (३०) ( ०नि०) या...। (प्र०) दास कंदरप के दररको है आदरस दरपन समान कहें कैसे बात सत होइ । ८. ( का० ) दरस...I (न० सि० सं० ) दाप या दरप को दरप कंदरप को है, दरपन समान ठाने...होइ । ६.(०नि०) होइ । १०. (प्र०) राधिका के मानन समान और नारिन के आनन-कहत कोंन कवि कूर अति होइ। (१०नि०)-सवलान में राधिका को भानन बराबरी को कहैं...होइ । ११. (३०) होइ। १२. ( नि.)... कलंकित न अक ताहि...। १३. (३०) (प्र.) (J नि०) (न० सि०स०) हो।

  • नि० ( भिखा० ) पृ० २०, ५६ । न० सि० सं० पृ० १४६, ५०२ ।