पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३३२

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बारहवाँ उल्लास अथ अन्योक्ति-आदि अलंकार बरनन जथा- अप्रस्तुत परसस औ प्रस्तुत अंकुर लेखि । समासोक्ति, ब्याजस्तुत्यौ, आच्छेपै अबरेखि ॥ पर जाजोक्ति समेत किय, षट भूषन इक ठौर । जॉनि सकल 'अन्योक्ति' में, सुनों सुकबि सिर-मौर ॥ वि०-"दास जी ने इस बारहवें उल्लास में अन्योक्ति-प्रधान-"अप्रस्तुत- प्रशंसा, प्रस्तुतांकुर, समासोक्ति, व्याजस्तुति, श्राक्षेप और पर्यायोक्ति-आदि छह अलंकारों का, उनके भेदों सहित वर्णन किया है । संस्कृत-अलंकार-साहित्य में "समासोक्ति", जो वहाँ 'अर्थ-वैचित्र्य प्रधान मानी गयी है, के अतरिक्त अन्यों को "श्रभेद-प्रधान अध्यवशाय-मूलक अलंकारों के प्रथम भेद-"भेद प्रधान" अलंकारों के बाद “गम्य-प्रधान" अलंकारों में गिनाया गया है । इन अन्योक्ति- अलंकृत अलंकारों में दास जी ने प्रथम "अप्रस्तुत-प्रशंसा का वर्णन किया है, जो पाँच प्रकार का है।" अथ अन्योक्ति-अंतर्गत अप्रस्तुत-प्रसंसा भेद जथा- कारज-मुख कारन-कथुन कारन के मुख काज । पहुँ साँमान्य-बिसेस द्वै', होत ऐस-ही साज ॥ कहूँ सहस-सिर डारि के, कहत सहस' सों बात । 'अप्रस्तुत-परसस' के पाँच-भेद औदात ॥ वि०-"जैसा दासजी का कथन है-अप्रस्तुतप्रशंसा (जहाँ अप्रस्तुत की प्रशंसा, उसका वर्णन-प्रस्तुताश्रय अप्रस्तुत का वर्णन करना, अप्रस्तुत का इस प्रकार वर्णन करना कि प्रस्तुत स्पष्ट लक्षित हो जाय-इत्यादि...) के पांच भेद-कार्य-मुख से कारण, कारण-मुख से कार्य, सामान्य का विशेष से, विशेष का सामान्य से पा०-१. (३०) (प्र०) है...। २. ( का० ) (३०) (प्र. ) सरिस । ३ ( का० ) ( )(प्र.) सरिस....