पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३५

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बरनन को करि सकै अहो, तिहि भाषा कोटी ।

मचलि-मचलि माँगी, जाँमे हरि माँखन-रोटी ॥

---सत्यनारायण कविरत्न