वही बात सिगरो कहें, उलथा' होत इकंक। निज उक्ती करि बरनिऐं,' रहै सु कलपित संक। ताते दोउ' मिनित सज्यो, छमि हैं कवि अपराध । बन्यो-अनबन्यों समझिक, सोधि लेंहिये साध ॥
मो सँम जु" है है ते बिसेस सुख पै हैं पुनि
हिंदूपति साहिब के नीके मन-माँनों हैं ।
एते पै 'तोष रसराज 'रसलीन' बासुदेव-
से प्रबींन पूरे कबिन बखाँनों हैं॥
ता ते यै उद्यम अकारथ न जै है.
सब भाँति ठहरै है भलौ' हों हूँ अनुमानों है।
आगे के सुकबि रोमि है तौ कबिताई, .
न तौ राधिका-कन्हाई-सुमरन को बहाँनों है॥
वि०-"कहा जाता है इस कवित्त में 'दासजी' ने अपने समकालीन चार कवि तोष, रसगज, रसलीन और वासुदेव का नामोल्लेख किया है । ये चारों कवि दासजी के समय व्रजभाषा के उत्कृष्ट कवि माने जाते थे। कविवर 'तोष' का पूरा नाम अथवा कविता-नाम तोषनिधि था और ये जाति के ब्राह्मण शुक्ल, सिगरौर-प्रयाग के निवासी थे। आपका 'सुधानिधि ग्रंथ सं० १७६१ वि० में रचा गया तथा सन् १८५६ में काशी के भारतजीवन प्रेस से प्रकाशित हुआ। रसराज अथवा रसरास ( दोनों ही पाठ मिलते हैं ) का इतिवृत्त कुछ नहीं मिलता। यदि 'रसरास' पाठ मान लियाजाय तो इनकी सुंदर रचना के कुछ नमूने कविवर नवनीति चतुर्वेदी मथुरावासी के “गोपी प्रम-पीयूष-प्रवाह" में अवश्य मिनते हैं । आपका रचनाकाल सं० १८१० वि० कहा जाता है ।
पा०-१.(भा० जी० का०) उलथों...। २. (भा० जी०) (१०) सब निज उक्ति बनाई है।३. (भा० जी०) (३०) याते । ४.-(प्र०) (३०) हुँ...। ५ (प्र.) जे...। ६. (रा० का०) -मान्यों हैं । ७.(३०) याते परतोष...। ८. (रा० का०)बखान्यों हैं। ९. (प्र०) (भा० जी०)वै...। १०. (रा० का०) अनुमान्यों हैं। ११. (प्र०) न त...। १२. (रा० का०)बहान्यों हैं।