पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४४७

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४१२ काव्य-निर्णय एक का प्रधानता से द्वितीय का गौणता से होता है, पर समुच्चय में प्रधानता से ही सब का अन्वय होता है । वहां सहोक्ति में 'सह'-प्रादि वाचक-शब्द होते हैं, समुच्चय में नहीं। ब्रजभाषा-अलकार ग्रंथों में समुच्चय-भेदों के प्रति दो मत हैं। कुछ इसके तीन भेद :(जिनमें चिंतामणि-श्रादि श्राचार्य प्रधान हैं) और विशेष दो भेद (जिनमें भाषा-भूषण रचयिता जसवंत सिंह प्रधान है ) मानते हैं। तीन भेद मानने वाले–“एक साधक के साथ अन्य साधक" रूप समुच्चय, सदृश जोग समुच्चय और गुण-गुण जोग समुच्चय-श्रादि तीन भेद और दो भेद मानने वाले, “एक साथ बहुत भाव-उत्पन्न समुच्चय और एक कार्य करने को अनेकों का -समुच्चय' मानते हैं " अथ प्रथम सँमुच्चै उदाहरन जथा- दारन-सितारन के तारन को ताँने मजु, तैसिऐ मृदंगन की धुनि-धंधकारती । चमकें कनक - नग • भूषन बनकवारे, तैसी घूघरूँन का मँनक मँनकारती ॥ 'दास' गरबीली पग-ठोंन, बंक भोंह नेन, तैसिए चितोन बिहसॅन' मोहि मारती । बाँकी मृगनेंनी की अचूक गति लेन मृदु, होरा-से हिए को टूक-टूक करि गरती ।। अथ दुतीय समुच्चे उदाहरन जथा -- धैंन, जोबन, बल, भग्यता, मोह-मूल इक एक । 'दास' मिलें चारयों तहाँ, पैऐ कहाँ • विवेक ।। नाँतो नीचौ गर परयो, कुसँग निबास, कु-भोंन । बंध्या-तिय के कटु वचन, दुखद घाइको लोन ।। पा०-१.(का०) (३०) (सं० पु० प्र०) की...। २. (का०) धुकारती। ३. (३०) बने...।४ (३०) झनक मान-भारती । (सं० पु० प्र०)...मन-भारती । ५. (का०) ध्रुव-नि...। (सं० पु० प्र०) भुष-नोनि... (३०) दास गरवीली पगु मंक बंक अपनोंनि...। ६. ( का०)(०) (प्र. ) सहसँन...। ७. (प्र०) लीन...। .(2) -सों ..18.(सं० पु० प्र०) नहीं...। १०.(सं० पु० प्र०) कहा...। ११. (सं०पू० प्र०) कुस गुनि बास...। १२. (40) को...।