पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४६७

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३३२ ३३२ काव्य-निर्णय अथ सूच्छंमालकार लच्छन जथा- चतुर-चतुर बातें करें, संग्या कछु ठहराइ । तिर्हि 'सूच्छम' भूषन कहैं, जे प्रवीन कपिराइ । वि०-"दासजी के कथनानुसार सूक्ष्म अलकार का लक्षण-"किसी संज्ञा- विशेष को ठहरा कर विद्वद्जनों का चातुर्य-पूर्ण वार्तालाप है, जिसे पास बैठे हुए साधारण व्यक्ति न समझ सकें। संस्कृत-अलंकार ग्रंथों में सूक्ष्म का कथन-दंडी ने, रुद्रट ने, भोज ने, मम्मट और रुय्यक ने किया है। प्राचार्य मम्मट ने काव्य प्रकाश (संस्कृत ) मे इसका लक्षण यह दिया है-- __"कुतोऽपिलक्षितः सूक्ष्मोऽप्यर्थोऽन्यस्मै प्रकाश्यते । धर्मेण केनचिद्यत्र तत्सूचमं परिचक्षते ॥" अर्थात् “जहाँ किसी ज्ञापक कारण (आकार-श्राकृति वा संकेत) द्वारा कोई सूक्ष्म ( केवल सहृदय व्यक्तियों के जानने योग्य ) वस्तु किसी धर्म (श्राकृति वा संकेत) से अन्य के प्रति प्रकट की जाय तो वहाँ सूक्ष्मालंकार है।" साथ-ही यहां 'ज्ञापक-कारण' की विषद न्याख्या करते हुए कहा गया है कि “यहाँ 'ज्ञापक- कारण' से तात्पर्य 'श्राकार' या 'संकेत' से है और 'सूक्ष्म शब्द से तात्पर्य उस अर्थ से है जिसे अत्यंत तीदण बुद्धिवाले सहृदय व्यक्ति-ही समझ सकें।" सूक्ष्म की इस परिभाषा-द्वारा इसके 'श्राकार से लक्षित होने वाला' और 'संकेत-द्वारा लक्षित होने वाला' दो भेद हो जाते हैं। साहि य-दर्पण में भी इसके ऊपर लिखे दोनों भेदों का उल्लेख है। सूक्ष्म का अर्थ है-महीन, बहुत बारीक, जिसे साधारण बुद्धिवाला व्यक्ति न समझ सके और जिसे समझने के लिये तीदण-बुद्धिवाला व्यक्ति ही चाहिये। अथवा तीक्ष्ण-बुद्धि के द्वारा सहृदय व्यक्तियों के जानने योग्य रहस्य, जैसा कि ऊपर काव्य-प्रकाशकार का मत है। अतएव श्राकार वा संकेत (इगित) द्वारा शात सूक्ष्म रहस्य को विदग्धतापूर्ण युक्ति से बहाँ सूचित किया जाय वहाँ यह अलंकार होता है । यहाँ अाकार से मतलब है-भाव-भंगिमा, जो अंग-प्रत्यंग रूप विशेष संस्थान से सूचित होती है । संकेत से-इंगित से तात्पर्य है चेष्टा, इशारा । साथ-ही सूक्ष्म में तीन बातें भी अावश्यक है-'जिसका रहस्य है वह और उसे जानकर सूचित करनेवाला उभय व्यक्ति का होना, आकार या इंगित से रहस्य शात कर लेना और इस रहस्य-ज्ञान को ऐसी युक्ति से उस पर सूचित करना कि साधारण व्यक्ति न समझ सके। पा०-१.( स० पु० प्र०) जहाँ.... २. (रा० पु० प्र०) तह...J