काव्य-निर्णय वि०-"दासजी ने इस सवैया में काव्य के मूल अंगों का वर्णन किया है, जैसे-“पदार्थ, जो वाचक, लक्षक और व्यंचक कहे जाते हैं, भूवन-मूल अर्थात् अलंकारों का सार, रसांग-रस-सामिग्री, परांग वा अपरांग - अंगांगीभाव, धुनि (ध्वनि)-वाच्याथ की अपेक्षा जब व्यंग्याथ में अधिक चमत्कार हो, गुण (गुण)-माधुर्य, प्रोज, प्रसाद, अथवा 'गुणीभूत व्यंग्य-वाच्यार्थ जब व्यंग्यार्थ में अधिक चमत्कार न हो, समान वा न्यून चमत्कार हो, अर्थात् व्यंग्यार्थ प्रधान न हो और अलंकृत-अलंकार अर्थात् जहाँ व्यंग्य के बिना वाच्यार्थ में ही चमत्कार हो और चित्र काव्य इत्यादि...। दासजी के इस मवैया को "काव्य-निर्णय" की 'सूची' भी कह सकते हैं, क्योंकि प्रायः उक्त कथन के अनुसार ही अापने काव्यनिर्णय के उल्लासों-भागों का निर्माण किया है।" "इति श्री सकल कलाधर-फलाधर वंसावतंस श्रीमन्महाराज कुमार बाबू "हिंदूपति" विरचिते 'काव्य-निरनए' मंगलाचरन बरननं नाम प्रथमोल्लासः ॥"
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