पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४८

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अथ-दितीयउल्लास “पदार्थ-निर्णय" 'दोहा' जथा- पद बाचक ो लाच्छिनिक, बिंजक' तीन विधान । ताते बाचक-भेद कों, पहले करों बखाँन । बाचक-भेद 'दोहा' जथा-- जाति, जदिच्छा, गुन, क्रिया, नॉम जुचार प्रमाँन । सब की संग्या 'जाति' गनि, बाचक कहें सुजॉन' ||* वि०-"प्रत्यक्ष संकेत किये गये अर्थ को बतलानेवाले शब्द 'वाचक' कहलाते हैं और ये-'जाति, यहक्षा, गुण और क्रिया-वाचक रूप से चार प्रकार के होते हैं।" उदाहरन 'दोहा' जथा- जाति-नाम 'जदुनाथ' गनि, 'कॉन्ह' जदिच्छा धारि। गुन ते कहिऐं 'स्याम' श्री क्रिया-नाम 'कंसारि't पा०-१. (प्र०) (३०) बिंजन, व्यंजन। २. व्यं० म० (ला० भगवानदीन) पृ० ३ में इसका यह रूप मिलता है । यथा- "सब्द कहत प्रघटै रथ, वाचक सोइ प्रमान । जाति, जदृच्छा, गुन, क्रिया, नाम चार पैहचान " और संमेलन-प्रयाग की हस्तलिखित प्रति जो अमेठी-नरेश की है, उसमें डेढ़ दोहा ही लिखा मिलता है। यथा- "जाति, जदृच्छा, गुन, क्रिया, नाम जु चार प्रमांन । पद बाचक अरु लाच्छिनिक, व्यजन तीन विधान ।। ताते बाचक-भेद कों, पैहले कहों बखाँन ।" ३. (प्र०)(सं० प्र०) अरु....

  • का० प्र०-भानु० पृ० ६७ । व्य० म० ( ला० भ० दी० ) पृ० ३। का० प्र०-

भानु, पृ०६७।