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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५०१

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४६६ काव्य-निर्णय पाठ भेद प्रत्यच्छ गुनि, म माँना उपमान । सन्दर्यापति-अनुपलवधि सभव, एतिह ऑन ॥ अतएव जहां किसी अर्थ का प्रमाण, अर्थात् यथार्थ का अनुभव (अमुक पदार्थ ऐसा व इतना है ) वर्णित हो, वहां प्रमाणाल कार होता है और उसके ऊपर लिखे अाठ भेद होते हैं। संस्कृत में महाराज भोज ने और अप्पय दीक्षित ने इन्हें स्वीकार किया है तथा कतिपय भाषा-थों में भी इनका वर्णन मिलता है। कुछ प्राचार्यों का कहना है कि प्रमाण रूप प्रत्यक्ष और अनुमान इन दोनों में ही कुछ-कुछ विशेषता है, अन्य प्रमाण-शब्दादि इनके भीतर समा जाते हैं, साथ ही इनमें कोई लोकोत्तर चमत्कार भी नहीं, इसलिये विस्तार करना व्यर्थ है।" फिर भी प्रत्यक्षादि पाठों प्रमाणों की व्याख्या इस प्रकार कही गयी है। प्रत्यक्ष, यथा- इंद्रिय अरु मन ए जहाँ, विषह पापनों पाइ। ग्याँन करें प्रत्यच्छ तिहि, कहि 'गुलाब' कबिराह ॥" अर्थात् जहाँ पाँचों इंद्रियाँ और मन रूप छहों में से किसो एक, दो, तीन वा चार अथवा सबों के विषय का यथार्थ अनुभव हो वहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण कहा बाता है। इद्रियां-कर्ण, त्वचा, नेत्र, जिह्वा, नासिकादि और इनके विषय शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और संकल्प-विकल्प कहे जाते हैं। अनुभव-प्रमाण वहाँ होता है, जहां किसी साधन-द्वारा किसी साध्य पदार्थ का निश्चयात्मक अनु- मान हो, यथा-"अनुमानंतदुक्त यत्साध्यसाधनयोर्वचः" अथवा-मनुमान जु कारन देखिके, कारज लीजै जाँन । __ संस्कृत-अलंकार-ग्रंथों में प्रमाण तो नहीं, पर इसके द्वितीय भेद 'अनुमान' को अलकार रूप में अवश्य ग्रहण किया गया है । इन मान्यवालों में-श्राचार्य रुद्रट, भोज, मम्मट और रुय्यक प्रधान हैं। अतएव श्री मम्नटाचार्य ने काव्य- प्रकाश में इसका लक्षण जैसा पूर्व में लिखा है -- "अनुमानं तदुक्तयत् साध्य- साधनयोर्वचः" (जहां साध्य-सिद्ध करने योग्य वस्तु और साधक-सिद्ध करने वाला हेतु, का कथन किया जाय वहाँ अनुमानालकार) कहा है। • अनुमान, कवि-कल्पित चमत्कार पूर्ण साधन के द्वारा साध्य को ज्ञान कराये जाने पर-ही अलंकार श्रेणी में श्रायेगा, अन्यथा नहीं। यहाँ साधन शापक कारण रूप में होता है। अनुमान में, उत्प्रेक्षा-वाचक-शब्द-जानत हों, मानत हों, जानों, मानों और निश्चै आदि का प्रयोग जैसा उत्प्रेक्षा में होता है, वैसा यहां (अनुमान) भी प्रायः होता है, किंतु उत्प्रेक्षा में इन वाचक शब्दों का प्रयोग उपमेय में उपमान के साहश्य की संभावना में अनिश्चित रूप से किया जाता