४७४ काव्य निर्णय प्रमाणित किया गया है। इसी प्रकार द्वितीत, तृतीय, चतुर्थ चरण में भी वही बात है, इस लिये माला है"-भारती-भूषणे श्री केडिया-वचनात् ।" अथ काव्यलिंग अलंकार-लच्छन जथा- जहँ सुभाब के हेतु कौ, करि' प्रमाँन कहि कोइ । करै सँमर्थन-जुक्ति-बल,' 'काब्यलिंग' है सोइ ॥ कहुँ बाक्यार्थ सँमरथिऐ, कहुँ सबदारथ' जॉन । काब्यलिंग कबि-ज क्ति गॅनि, वहे निरुक्ति न ऑन ॥. वि०-"जहाँ स्वाभाविक हेतु प्रमाण के साथ युक्ति-बल से समर्थन किया जाय, वहाँ 'काव्यलिंग' कहा जाता है । यह काव्यलिंग-कहीं वाक्यार्थ और कहीं शब्दार्थ के समर्थन से दो प्रकार का होता है। कोई-कोई काव्यलिंग को 'वाक्या- यंता (संपूर्ण वाक्य के अर्थ में कारण का कहा जाना) और पदार्थता (एक पद के अर्थ में कारण का कहा जाना ) नाम के उभय भेद में विभक्त करते हैं, पर बात दोनों एक-ही हैं। काव्यलिंग में दो शब्द हैं-'काव्य' और 'लिंग' । यहाँ 'काव्य' शब्द का प्रयोग तर्कशास्त्र में माने हुए लिंग के साथ पृथक्ता दिखलाने को किया गया है। लिंग का अर्थ- कारण, चिन्ह' वा 'हेतु' - आदि है। अतएव जहाँ वाक्य या पद के अर्थ से हेतु का भी वर्णन-कथन किया जाय, वहाँ यह अलंकार होता है। जो कुछ वर्णनीय विषय है उसके कारण का अन्य वाक्य, पद अथवा शब्दों से उल्लेख करते हुए समर्थन किया जाना इसका विषय है। ब्रजभाषा के प्रयों में—'जब किसी अर्थ का समर्थन युक्ति पूर्वक किये जाने पर यह अलंकार मानना कहा है। ___ काव्यलिंग का जैसा शब्दार्थ किया गया है, 'काव्यलिंग-चिन्ह (कारण) होता है और यहाँ कारण का प्रयोग 'ज्ञापक' या 'सूचक' रूप में होता है, 'कारक' का नहीं । इसी प्रकार शापक-कारण वह है जिससे किसी वस्तु का ज्ञान हो और सूचक, सूचना देने वाला । अतएव इसी ज्ञापक कारण से यह अलंकार समझा जाता है । यहाँ जो 'कारण' कहा जाता है, उसका बोध 'कारण' शब्द से नहीं, उसके अर्य से कराया जाता है। पा०-१.( का०)(प्र.) के प्रमान जो कोइ । () कै प्रमान को कोई । २. (का०), (३०) सों...। ३. (का०)..(40)(सं० पु. १०) (प्र०) सम्बार्य सुखांन । ल० सौ० (दिजदेव ) पृ० ४०५ (टिप्पणी)। ' ' . . ...
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