पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५०८

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काव्य-निर्णय ४७३ "होगा कोई जहाँ में, (जो) गालिब को न जाने ? . शायर तो अच्छा है, (पर) बदनाम बहुत है।". । पाठयों प्रमाँन-अरथापत्ति उदाहरन जथा- तिय-कटि नाहिंन जौ' कहैं, तिन्हें न मति की खोज । क्यों रहिते आधार-बिन, गिरि-से कठिन उरोज ॥ अरथापत्ति बचन-प्रमान जथा-- इतौ पराक्रम करि गयौ, जाको दूत निसंक । कंत कहौ दुस्तर कहा, ताहि तोरिबौ लंक। वि०-"दासजी द्वारा अर्थापत्ति प्रमाण के उदाहरण स्वरूप प्रथम दोहे को किसी कवि ने इस प्रकार अपनाया है, यथा- "तिय तेरी कटि है, यहै-मैं कीन्हों निरधार । जौ न होइ तौ को धरै, बिपुल पयोधर-भार ॥" रसलीन कहते हैं- "अरुन माँग पटियाँ नहीं, मार जगत को मार। असित फरी पै लै धरी, रकत भरी तरबार ॥" अथवा- "नहिं अंबर अंग, न संग सखा, बहु भूतन के डर-सों डरतो। डरतो पुनि साँपन की सुसुकारनि, भाँग-बटोरत-ही मरतो॥ मरतो जिहि जाँनी न जन्म-कथा, नर-बाहँन-सों खर नौ चरतो। हँसि पारबती कहै संकर सों, हम नौ बरती, तुम्हें को बर तो॥" श्री केशवदास कृत 'अर्थापत्ति' की माला-स्वरूप निम्नलिखित छंद भी देखिये, यथा- "बाल बली न बच्यो पर-खोरहि, क्यों बचिहो तुम मापनी खोर-हि। जा लगि छीर-समुद्र मथ्यौ, कहि कैसें न बाँधि हैं बारिध-थोर-हिं॥ श्री रघुनाथ गनों असमर्थ न, देखि विनों - रथ, हायिन, घोर-हि। तोरयो सरासन संकर को, जिहिं सोंब कहा तुष लंक न तोर-हिं॥" यहाँ "स्वयं राम के अपराधी तुम कैसे बचोगे?" इस अर्थ को "पर (सुग्रीव ) का अपराधी बालि उनके द्वारा मारा गया" इस अन्याय के योग से पा०-१. (का० (३०) (प्र.) जे को...। २. ( रा० पु० नी० सी०.) तो जु न मति की...। ३. (का०) (३०) (प्र०) जुगल...।