पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५५४

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काव्य-निर्णय ५१६ -देखे-दिखलाये जाते हैं। अतएव इसके भी तीन भेद-पदावृत्ति-दीपकं, अर्थावृत्ति-दीपक और ‘पदार्थावृत्ति-दीपक कहे जाते हैं। जिन पदों की यहां श्रावृत्ति होती है वे प्रायः क्रियात्मक होते हैं। ___ श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती ने 'साहित्य-दर्पण' में दीपक के श्रादि, मध्य और अंतधर्मा तीनों भेद नहीं माने हैं। श्राप कहते हैं कि "यद्यपि यहाँ गुण-क्रिया रूप धर्म श्रादि, मध्य और अंत में होने के कारण तीन भेद हो सकते हैं, किंतु उन्हें हमने (विश्वनाथ चक्रवर्ती ने ) नहीं दिखाया है, क्योंकि इस प्रकार की विचित्रताएँ तो हजारों भांति की हो सकती हैं, यथा- ___“अन च गुणक्रिययोरादिमध्यावसानसद्भावेन त्रैविध्यं न लक्षितं तथाविध- वैचित्र्यस्य सर्वत्रापि सहस्रधा संभवाद..." दीपक को पंडितराज श्री जगन्नाथ ने तुल्ययोगिता के अंतर्गत माना है। श्राप कहते हैं कि “जब केवल प्रस्तुतों अथवा (केवल) अप्रस्तुतों के एक धर्म कथन में तुल्ययोगिता के दो भेद माने गये हैं, तो वहाँ प्रस्तुत-अप्रस्तुत के एक धर्म एक साथ कहने में कोई विशेष चमत्कार प्रतीत नहीं होता, इसलिये दीपक को तुल्य- योगिता से पृथक् मानना उचित नहीं है ।" किंतु तुल्ययोगिता में केवल उपमेयों अथवा उपमानों का एक धर्म कहा जाता है, दीपक में नहीं। यहाँ ( दीपक में ) उपमेयोपमान दोनों का एक धर्म एक साथ कहा जाता है, जैसा तुल्ययोगिता में नहीं कहा जाता, इस लिये इसका पृथक् मानना-ही उचित है । ब्रजभाषा के ग्रंथों में 'दीपक' के लक्षण निम्न प्रकार से माने गये हैं- "प्रस्तुत नौ प्रस्तुतन को सरस धर्म-संजोग । गम्य होइ कै अगॅम जित, तित 'दीपक' पुष-जोग ॥" ____-चिंतमणि सो 'दीपक' निज गुनॆन सों, बर्म्य इतर इक भाइ । -भाषा-भूषण ब-भवन को जहाँ, धरम होत है एक। बरनत है 'दीपक' तहाँ, कवि करि विमल विवेक --मतिराम इन सभी उदाहरणों में दीपक का लक्षण उपमेयोपमानों का गुण-क्रियादि द्वारा एक धर्म होना कहा है । वामनाचार्य ने जैसा पूर्व कह पाये हैं, वार्य की एक ही क्रिया का होना कहा है। साथ ही साहित्य-दर्पण के टीकाकार जीवा-