काव्य-निर्णय यह कि यह शब्द-अलंकार व्यंजन-समूह, अर्थात् एक से अधिक व्यंजनों की एक बार उसी क्रम से पुनरावृत्ति में होता है। छेक-रस-सर' में नहीं, 'सर-सर' में. माना जायगा, क्योंकि एक वर्ष की श्रावृत्ति क्रमशः होना कहा गया है। यथा-"अनेकधेति स्वरूपतः क्रमतश्च" । अर्थात् इसमें स्वरूप तथा क्रम दोनों से समानता होनी चाहिये। दासजी ने 'छेक' के दो भेद-'आदि' और अंत वर्ण को आवृति से माने हैं। इन्हीं को संस्कृत-रोति-प्राचार्यों ने "स्वर-साम्य" तथा "स्वर-वैपम्य" कहा है।" आदि बर्न की आवृत्ति तें 'छेक' उदाहरन जथा- तरुनी के बर-बेन सुनि', चीनी चकित सुभाइ । दाख दुखी, मिसरी मुरी, सुधा रही सकुचाइ । वि०-“यहाँ बर बेन, चीनी चकित, दाख दुखी और मिसरी मुरी" में व, च, द, म को श्रावृत्ति से-श्रादिवर्ण की श्रावृत्ति से, यह शब्दालंकार बना है। ___ अंत बर्न की आवृत्ति सों छेक उदाहरन जथा- जॅन-रंजन भंजन-दँनुज, मँनुज-रूप सुर-भूप । बिस्व-बदर इव धृत उदर, जोवा सोबत सप ।। वि०-“यहाँ, जैन, नुज, दर, बत में-आदि 'वर्ण' की एक - एक बार श्रावृत्ति है, साथ-ही 'स्वर' को भी, इस लिये छेक का यह द्वितीय उदाहरण सुंदर है।" अथ वृत्यानुप्रास लच्छन जथा- कहुँ सरि 'बर्न' अनेक की, पर अनेकन बार । एकै की आवृत्ति बहु,' वृत्यौ द्वं जु प्रकार ।। वि.-"जहां अनेक समान वयों को अनेक बार श्रावृत्ति हो-वे बार-बार आयें, वहाँ 'वृ यानुप्रास' दासजी ने माना है। यह वृत्ति-अनुप्रास आदि और अंत क्यों की प्रवृत्ति से दो प्रकार का होता है। पा०-१. (का०.) (६०) र तरुनी के मैन मुनि.... २. (का०) (प्र.) दुखी दाख...(३०) दुखी दास... (सं० पु० प्र०) पास दुखित...||३. (२०) जो प्रति सोबत... ४..(का०प्र०) रूम। ५.(का०) (०) (प्र०)क, त्यो दो प्रकार। (सं० पु० प्र०-दि०) तीन...।
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