पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५९९

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५६४ काव्य-निर्णय दरपॅन देखें सुबरन-रूप-भरी, बार- बनिता बखाँनी हैं के रोनाँ सुलतानी है ।। दुतिय तृ-अर्थक स्लेस को उदाहरन जथा- पॉनिप के आगर, सराहें सब नागर, ___ कहत 'दास' कोस ते लख्यौ प्रकासमाँन में । रज के सँजोग ते अंमल होत जब-तब, हरि-हितकारी बास जाहर जहाँन में ।। श्री कौ धाम सहजें करत मँन काँम थकै, बरनत बाँनी जा दलॅन के बिधान में । एतौ गुन देख्यौ राँम साहिब सुजाँन में, कै बारिज-बिहाँन में, कै कीरत कृपाँन में | तृतीय चतुर्थ-अर्थक स्लेस को उदाहरन जथा- छाया सों रलित परभृत द्यौ सु दरसँन, बाल-रूप-दुति सु परव-गन बंद है। दिन को उदित छैन-दान में बिलोकियतु, हरि-महातैम देत ऑनद कौ५ कंद है। भब-आभरँन अरजुन सों मिलाप कर, ___मौनों कुबलै को हरन दुख-दंद है। एतौ गुनबारौ 'दास' रबि है, कि चंद है, कै देवी को मृगेंद्र है, कि जसुमति-नंद है। अथ स्लेस की संदेहालंकार ते प्रथकता बरनन जथा-- 'संदेहालंकार' इत, भूलि न आँनों चित्त । कयौ स्लेस दृढ करन कों, नहिं समता-थल मित्त । वि०-"दासजी कृत श्लेष के तीनों उदाहरण अपने-अपने शीर्षकों में स्पष्ट . साथ-ही दूसरे और तीसरे उदाहरणों के अंतिम चरणों में 'कि. वा 'के' जो, अथवा अर्थ के द्योतक है, उनसे उक्त छंदों-उदाहरणों में संदेहा- पा०-१-२. (का०) (३०)(प्र०) (स० स० ) कि, कि, । ३. (६०) कीमत"।४. (a) जिनका"। ५. (का०) (३०) आनंद-निकंद है। ६. (स' पु०प्र०) को"। ७ (का०) (व.) (प्र०) जानों"।

  • स० स० (ला० भ० ) पृ०--४०१) ।