पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६१७

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५८२ काव्य-निर्णय अथ कमल-बंध उत्तर लच्छन जथा- अच्छर पढ़ौ समस्त कों, अंत-बर्न सों जोरि । 'कमल-बंध' उत्तर वही,' ब्यस्त-समस्त बहोरि ।। उदाहरन जथा- कह कपीस सुभ-अंग, कहा उछरत बर-बागँन । कहा निसाचर-भोग, माघ में कोन' दाँन भँन ।। कहा सिंधु में भरौ, सेतु किन कियौ को दुत्तिय । सरसिज-सकट कितै, कहा लखि घृनों होत हिय ।। किहि 'दास' हलायुध हाथ-धरि, मारयौ महा प्रलंब-खल । क्यों रहत सुचित सोबत' सदा, "गँनपति-जननी-नाम-बल ॥" अस्य तिलक इहाँ "गनपति-जननी-नाम-बल" से--'गल, नल, पल, तिल, जल, नलनील, नाल, मल, बल और गँनपति-जननी-नाम-बल" सों सबके उत्तर दिये । यथा- १० - पा०-१.(प्र०) वहै...। २. ( का० ) (३०) (प्र०) कवन...। ३. (३०)(प्र०) सरसिज कितै संकट,"। ४. (३०) (प्र०) साकत...।