पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६५१

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काव्य-निर्णय अस्य उदाहरन । माँ नी वि र में थाँ न न में" | म म | 'दा | स' र हयौ | मि लि | म न सोंक | है न बि | कि घर वि०--"दास कृत इस चित्र-विधान में "भ्रमें बिहारी प्रॉनन में" रूप नौ अक्षर गुप्त है । अर्थात् है तो सही, पर साधारण दृष्टि से वे परे हैं। इन शन्दों को कोष्ठक में दिये गये अंकों-१, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ६ के सहारे जाना जाता है । अर्थात् जो 'भ्रमें बिहारी प्रॉनन में "रूप चरण गुप्त है, वह प्रकट हो जाता है।" अभि' लाखा' करी सदा' ऐस*नि का'होय वृत्थ, " सब ठौर' दिन" सब याही सबा चर' चॉन !* लौभालई नीचें ग्याँनचला चलाहो कौरस अंत है क्रिया"पताल' निंदा रसही को खाँन । सेनापति देवी कर प्रभा४ गँन ती को भूप, पंना",मोती,हीरा३९.हेम ,सौदा"हासही कौ जॉन । होय। पर॥ जीब" पर बदे जसु.९ रटे५० नाँउ, खगासन, नगधर,सीता "नाथ", कौल५० पान ॥

पा०-* (का०) (०) अमिलाना कारी मा येसनि कामीय बय, सब ठौर दोन सब-

याही...(०) हलाहल"It (प्र०) सोमा गनती"। (प्र०) ही ऊपर, देव पर, बदे जस"