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पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/७३

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काव्य-निर्णय सुरत मिश्र ने अपने 'रसरल' नामक नायिका-भेद के विशिष्ट प्रथ में प्रवत्स्यत्पतिका का भेद “हर्षित्गच्छत्पतिका" और माना है । (४) बाक्य-बिसेख ते बरनन 'दोहा' जथा- अवलों-हीं' मोही लगो, लाल तिहारी दीठि । जात भई अब अनँत कत, करत साँमुहें नीठि ॥. अस्य तिलक इहाँ (नायिका) के बाक्य ते ये ब्यजित होत है कि नायक में दूजी नायिका को लख्यौ-वा सों प्रेम कियो। वि०-"वाक्य में आये हुए किसी शब्द विशेष से अथवा संपूर्ण वाक्य की विशेषता से व्यंग्याओं का प्रतीत होना 'वाक्यवैशिष्ट य' कहलाता है। दासजी के इस दोहे में श्राये हुए- "जात भई अब अँनत कत.".. से जाना जाता है कि नायक ने अब किसी अन्य नायिका से संबंध-प्रेम किया है। यह दोहा धीरा नायिका- स्वकीयांतर्गत स्वपति को अन्य नायिका (स्त्री) पर आसक्त देखकर कुपित होनेवालो को उक्ति है, यथा- "कोप जनावै ब्यंग सों, तजै न पति-सनमाँन । 'मध्याधीरा नायिका' ता को कहत सुजॉन ॥" -ज० वि० ( पद्माकर ) मुग्धा में 'धीरत्व' नहीं होता, कारण स्पष्ट है। केवल मध्या और प्रौढ़ा नायिकाओं में ही यह भेद होता है, जो-धीरा, अधीरा और धोराधीरा नाम से तीन प्रकार का है, अर्थात् "मध्या धीरा"-जिसका लक्षण ऊपर लिखा जा चुका है, "मध्या-अधीरा"--कटुक्तियों द्वाग पति का अनादर कर कोप प्रकट करनेवाली, "मध्या धीराधीरा"-जो नायक प्रति मुख से अप्रिय वचन न कह रोदन के द्वारा ही अपना कोप प्रकट करे, “प्रोढाधीरा'-प्रकट रूप में कोप का प्रदर्शन न कर रति में उदासीन रहे, "प्रौढा-अधीरा"-जो कटु भाषण पा०-१. (प्र० ३) तौ"। २. (प्र. ) ( भा० जी० (३०) नई...| ३. ( भा०. जी०) (३०) सामुहीं..

  • का० म० ( भानु ) १०७ । व्यं० मं० ( ला० भ०) पृ० २१ ।