पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/९१

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५६ ५६ काव्य-निर्णय प्रतीप बरनन 'दोहा' जथा- 'उपमाँ' श्री 'उपमेई' कों,' सँम' न कहे गहि बैर । ___ता को कहत 'प्रतीप' है, पाँच' प्रकार सु फेरि ॥ वि०-"प्रतीप का अर्थ है-विपरीत, प्रतिकूल । अतएव उपमान को उपमेय रूप में कल्पना करना आदि कई प्रकार की विपरीतता वा प्रतिकूलता होती है। दंडी से प्रतीप को विलोमवाची शब्द मान कर-'विपरीतोपमा' अथवा “विपर्योपमा' कहते हुए इसे 'उपमा' का ही भेद कहा है।" ___ पाँचौ प्रकार के प्रतीप को उदाहरन 'सवैया' जथा- चंद कहैं तिय-आँनन सौ, जिन की मति बाँके बखाँन सों है रली । प्रानन एकता चंद लखें, मुख के लखे चंद-गुमान-घट अली । 'दास' न ऑनन सौ कहैं चंद, दई सो भई ये बात न है भली। ऐसौ अँनूप बनाइ के ऑनन, राखिबे कों ससि हु की कहा चली। वि०-"दासजी ने यहां संक्षेप में पांचौ प्रकार के प्रतीपों का उदाहरण एक ही छंद (सवैया) में दिया है । जैसे—प्रथम चरण में प्रथम प्रतीप का उदाहरण, द्वितीय चरण में द्वितीय और तृतीय प्रतीप का उदाहरण, तीसरे चरण में चतुर्थ प्रतीप का उदाहरण और चौथे चरण में पांचवे प्रतीप का उदाहरण दिया है।" दृष्टांत अलंकार बरनन 'दोहा' जथा- सँम बिंबन-प्रतिबिंब गति, है 'दृस्टांत' सुढंग। तरुनी में मो मॅन बस, तरु में बसे बिहंग। अर्थांतरन्यास बरनन 'दोहा' जथा- सामान'बिसेस दृढ़, है 'परथांतरन्यास' । तो रस-बिन औरें कहा, जल-बिन जाइ न प्यास ।। निदर्सना बरनन 'दोहा जथा- द्वै सु एक-ही भरथ-बल, 'निदरसनों' की टेक । सतन असत सों माँगिबौ, औ मरिबौ है एक ।। पा०-१. (प्र०-३) जप . । २. (प्र०-३) कहें न सॅम गहि... ३. (प्र.) (ao) पंच... ४. (म०) सुफेर । ५. (प्र०) (२०) सों...। ६. (प्र०) (के) सामान्य...। ७. (सं० प्र०) (३०) सतनि...।