पृष्ठ:काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध.pdf/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ८६ )

समीकरण के द्वारा जिस अभिन्नता की रसस्सृष्टि वह करता है, उस में व्यक्ति की विभिन्नता, विशिष्टता हट जाती है; और साथ ही सब तरह की भावनाओं को एक धरातल पर हम एक मानवीय वस्तु कह सकते हैं। सब प्रकार के भाव एक दूसरे के पूरक बन कर, चरित्र और वैचित्र्य के आधार पर रूपक बना कर, रस की सृष्टि करते हैं। रसवाद की यही पूर्णता है।