पृष्ठ:काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध.pdf/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(१८)

मनोवैज्ञानिकता का अनुसरण मुख्य है। इस यथार्थवाद के साथ ऐतिहासिक भौतिक विज्ञानवाद (Historical Materialism) और नवीन कामविज्ञान का भी घनिष्ठ संबंध हो गया है। सामाजिक समस्याओं का व्यावहारिक नहीं, बौद्धिक समाधान भी इस वाद की विशेषता है। यह वाद सामाजिक उत्थान की निचली सीढ़ी, नींव अथवा जड़ के समीप रह कर ही अपनी उपयोगिता प्रकट करता है, ऊँची सांस्कृतिक भूमियों में जाने का कष्ट नहीं करता। उसकी दृष्टि मुख्यतः भौतिक विज्ञान पर स्थित है।

प्रसादजी ने आदर्शवाद के संबंध में लिखा है—'आरंभ में जिस आधार पर साहित्यिक न्याय की स्थापना होती है—जिसमें राम की तरह आचरण करने के लिए कहा जाता है, रावण की तरह नहीं—उसमें रावण की पराजय निश्चित है। साहित्य में ऐसे प्रतिद्वन्दी पात्र का पतन आदर्शवाद के स्तंभ में किया जाता है।' यह आदर्शवाद की परिपाटी भी ऐतिहासिक है, सैद्धान्तिक नहीं और मेरे विचार से आदर्शवाद की यह अवनतिशील (dependent) परिपाटी है। अपनी उन्नत अभिव्यक्तियों मे आदर्शवाद अतिशय निस्पृह विज्ञान है। किन्तु प्रसादजी जिस ऐतिहासिक आदर्शवाद का उल्लेख करते हैं, अपने स्थान पर वही ठीक है। बाद के रूप में आदर्श को प्रसादजी दुःखवाद की ही सृष्टि मानते हैं। इसीलिए वे कहते भी हैं—'सिद्धान्त से ही आदर्शवादी धार्मिक प्रवचन कर्ता बन जाता है। वह समाज को कैसा होनी चाहिए यही आदेश करता है। और यथार्थवादी