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पुरुष सम्बन्ध के अर्थ का ही मान होने लगा। किन्तु काम में जिस व्यापक भावना का समावेश है, वह इन सब भावों को आवृत कर लेता है। इसी वैदिक काम की, आगम शास्त्रों में, कामकला के रूप में उपासना भारत में विकसित हुई थी। यह उपासना सौन्दर्य, आनन्द और उन्मद भाव की साधना प्रणाली थी। पीछे बारहवीं शताब्दी के सूफी इब्न अरबी ने भी अपने सिद्धान्तों में इस की महत्ता स्वीकार की है। वह कहता है कि मनुष्य ने जितने प्रकार के देवताओं की पूजा का समारम्भ किया है, उन में काम ही सब से मुख्य है। यह काम ही ईश्वर की अभिव्यक्ति का सब से बड़ा व्यापक रूप है।*[१]

देवदासियों का प्रचार दक्षिण के मन्दिरों में वर्त्तमान है और उत्तरीय भारत में ईसवी सन् से कई सौ बरस पहले शिव, स्कन्द, सरस्वती इत्यादि देवताओं के मन्दिर नगर के किस भाग में होते थे, इस का उल्लेख चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में किया है। और सरस्वती मन्दिर तो यात्रागोष्ठी तथा सङ्गीत आदि कला-सम्बन्धी समाज के लिए प्रसिद्ध था। देवदासियाँ मन्दिरों में रहती ही थीं, परन्तु वे उस देवप्रतिमा के विशेष अन्तर्निहित भावों को कला के


  1. * Of the gods man has conceived and worshipped, Ibn Arabi is of opinion that Desire is the greatest most vital. It is the greatest of the universal forms of his self-expression. (M. Ziyauddin in "Vishwabharati.")