१२ काव्यदर्पण में श्राविभूत हो जाती हैं।" इसमें रसनिष्पत्ति को वही प्रक्रिया झनकती है, जिसका नाम 'साधारणीकरण' है। अभिनवगुप्त की भाषा में इसे कहें तो 'हृदयसंवाद' वा 'वासनासंवाद' कह सकते हैं। इसमें यह दोष श्रा जाता है कि जहां काव्यगत पात्रों के साथ रसिक हृदय का संवाद-मेल नही होता वहाँ लक्षणसंगति नहीं हो सकती। “काव्य-नाटक में विसंवादी भावनायें भी जागृत होती हैं। इस प्रकार कुछ काव्यलक्षणों की समीक्षा करने से यह स्पष्ट होता है कि कवियों और विवेचकों ने काव्यलक्षणो में कहीं तो उसकी मनमोहक शक्ति को प्रशंसा की है और कहीं उसके रमणीय गुणों का निदर्शन किया है। कहीं तो कवि की चित्त- वृत्ति का वर्णन पाया जाता है और कहीं उनके विचारों का, जिनसे कविता का प्रादुर्भाव होता है। किसी ने भाव पर, किसीने कल्पना पर, किसीने रचना-शैली पर, किसीने प्रकाशन-शक्ति पर, किसीने उद्दीपक शक्ति पर, किसीने रहस्य-पक्ष पर, किसीने अन्तदृष्टि पर बल दिया है। कोई काव्य को आनन्दमूलक, कोई कला- मूलक, कोई भावमूलक, कोई अनुभूतिमूलक, कोई आत्मवृत्तिमूलक, कोई जीवन- वृत्ति मूलक और कोई इसको हृदयोद्गारमूलक बताते हैं। काव्य-लक्षणों में भाषा, छन्द, संगीत, सत्य, सौन्दर्य, ज्ञान आदि को भी सम्मिलित कर लिया गया है। रस और श्रानन्द तो काव्य की मुख्य वस्तु है ही। कविता के उक्त वस्तुविवेचन में जो भिन्नता पायी जाती है उसमे कोई किसी पएक निश्चित सिद्धान्त पर पहुँच नहीं सकता। संक्षेप में यह लक्षण कहा जा "सकता है कि- सहृदयों के हृदयों की अाहलादक रुचिर रचना काव्य है। ललित कला में 'सहृदय' शब्द इतना जनप्रिय हो गया है कि इसकी व्याख्या की आवश्यकता नहीं; पर सभी को श्राचार्य का अभिमत अर्थ समझ लेना चाहिये। वह अर्थ है- 'सहृदय वह है जिसका हृदय काव्यानुशीलन से वणनीय विषय में तन्मय होने को योग्यता रखता है ।" यहाँ रुचिर से कलापक्ष का और अाह्वादन से भावपक्ष का ग्रहण है १. येषां काव्यानुशीलनाभ्यासवशात् विशदीभूते मनोमुकुरे वर्णनीयतन्मयीभवनयोग्यता ते हृदयसंवादभाजः सहृदयाः।-अभिनव गुप्त
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