पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/११३

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शब्द और अर्थ ७. विवृति से-विवरण या टोका से-जैसे, पद-पदार्थ के संबंध को 'अभिधा' कहते हैं जो 'शब्द की एक शक्ति है। इस वाक्य से अभिधा का स्पष्ट संकेतग्रहण हो जाता है। वाचक शब्दों के चार भेद होते हैं, जिन्हें अभिधा के इन मुख्य अभिधेयों के अभिधायक भी कह सकते हैं। वे हैं-१. जातिवाचक शब्द, २. गुणवाचक शब्द, ३. क्रियावाचक शब्द और ४. द्रव्यवाचक ( यदृच्छावाचक ) शब्द । १. जातिवाचक शब्द वह है जो स्ववाच्य समस्त जाति का बोध कराता है। जातिवाचक शब्द का अर्थक्षेत्र बहुत व्यापक होता है। उसका एक व्यक्ति में संकेतग्रहण हो जाने से जातिभर का परिचय परल हो जाता है । जैसे, 'आम'। २. गुणवाचक शब्द प्रायः विशेषण होता है। द्रव्य में गुण अर्थात् उसकी विशेषता (जिसके आधार पर एक जाति के व्यक्तियों में भी भिन्नता आ जाती है ) बतानेवाला भेदक होता है । यह संज्ञा, जाति - तथा क्रिया शब्दों से भिन्न होता है। द्रव्य को छोड़कर उसका कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं। वह नियमतः पराश्रित हो रहता है । उमसे वस्तु आदि का उत्कर्ष, अपकर्ष श्रादि समझा जाता है । जैसे-कच्चा, पका, हरा, पीला आदि । ३. क्रियावाचक शब्द क्रिया को निमित मानका प्रवृत्त होता है। ऐसे शब्द में क्रिया के श्रादि से अन्त तक का व्यापार-समूह अन्तर्हित रहता है । जैसे, हास-परिहास । यहाँ हॅसने में होठों का हिलना, खुनना, दांतों का दिखाई पड़ना और छिप जाना, मीठी-सी हल्की धनि का निकलना, यह समस्त व्यापार होता है। ४. द्रव्यवाचक शब्द केवल एक व्यक्ति का वोधक होता है। यह वक्ता की इच्छा से वस्तु वा व्यक्ति के लिए संकेतित होता है । संकेत करते हुए वक्ता कभी-कभी द्रव्य को कुछ विशेषताओं को लक्ष्य करके संज्ञा देता है और कभी बिना किसी विचार के यों ही कुछ नाम घर देता है। जैसे-चन्द्रमा, सूर्य, हिमालय, भारत, महेश प्रादि या नत्यू, घीसू, घुरहू, नीलरत्न, फणिभूषण, उदयसरोज, मुरलीधर आदि । __ अभिधा वा अभिवा-शक्ति साक्षात् संकेतित अर्थ के बोधक व्यापार को अभिवा कहते हैं। अथवा, मुख्य अर्थ की बोधिका शब्द की प्रथमा शक्ति का नाम अभिधा है। इसो अभिधा-शक्ति से पद-पदार्थ के पारस्परिक सम्बन्ध का रूप खड़ा होता है ।