पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/११२

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काव्यदर्पण शब्दों का अपना-अपना अर्थ उन-उन वस्तुओं के साथ संकेद-प्रहण-शब्दों के निश्चित सम्बन्धज्ञान-पर निर्भर रहता है । वस्तु का श्राकार-प्रकार इस सम्बन्ध- ज्ञान का बहुत कुछ नियामक है। संकेतग्रहण-शब्द और अर्थ का सम्बन्ध-ज्ञान-१. व्याकरण, २. उपमान, ३. कोष, ४. आप्तवाक्य अर्थात् यथार्थ वक्ता का कथन, ५. व्यवहार, ६. प्रसिद्ध पद का सान्निध्य, ७. वास्यशेष, ८. विवृति श्रादि अनेक कारणों से होता है।' १. व्याकरण से-जैसे, लौकिक, साहित्यिक, लठैत, लोहारिन शब्दों के क्रमशः ये अर्थ होते है-लोक में उत्पन्न, साहित्य का ज्ञाता, लाठी चलानेवाला और लोहार को स्त्री । ये अर्थ शब्दशास्त्रियों को सहज हो ज्ञात हो जा सकते हैं। कारण, वे प्रकृति प्रत्यय के योग को जानकर व्याकरण से संकेतग्रहण कर लेते हैं। २. उपमान से-उपमान का अर्थ है, सादृश्य, समानता, मेल, बराबरी श्रादि । इससे भी संकेतग्रहण होता है । जैसे-जई जौ के समान होती है। इस उपमान से 'जौ' का जानकार और 'जई को न जाननेवाला व्यक्ति 'जई' के 'जो' के समान होने से 'जई' को देखते ही सहज ही उसे पहचान लेगा। ३. कोष से- जैसे, देवासुर-संग्राम में निर्जरों ने विजय पायी । इस वाक्य में 'निर्जर' का अर्थ देवता है। यह सङ्कतग्रहण कोष से होता है । जैसे, 'अमर निर्जरा देवाः' -अमरकोष ४. आप्तवाक्य से-अर्थात्, प्रामाणिक वक्ता के कथन से । जैसे, किसी देहाती को, जिसने रेडियो कभी नहीं देखा है, रेडियो दिखाकर कोई प्रामाणिक पुरुष कहे कि यह रेडियो है तो उसे रेडियो शब्द से रेडियो के रूप का संकेत-ग्रहणा हो जायगा। इसी प्रकार शब्दों से अपरिचित वस्तुओं के परिचय कराने में आप्तवाक्य कारण होते हैं। ५. व्यवहार से-व्यवहार ही वस्तुओं और उनके वाचक का सम्बन्ध जानने में सर्वप्रथम और सर्वव्यापक कारण है। नन्हें-नन्हें दूधमुंहे बच्चे मां की गोद से ही वस्तुओं का जो परिचय प्रारम्भ करते हैं उसमें किसी वस्तु के लिए किसी शब्द का व्यवहार ही उनके शक्तिग्रहण का कारण का पदार्थ-परिचायक होता है। ६. प्रसिद्ध पद के सान्निध्य से अर्थात् साथ होने से-जैसे, मद्यशाला में मधु पोकर सभी मदमत्त हो गये । इस वाक्य में प्रसिद्ध पद 'मद्यशाला' और 'मदमत्त' से 'मधु' का अर्थ मदिरा हो होगा, शहद नहीं। यहां प्रसिद्ध शब्दों के साहचर्य से हो संकेतग्रहण है। शक्तिमहं व्याकरणोपमा नकोषाप्तवाक्याद् व्यवहारतश्च । सानिध्यतः सिद्धसदस्थ धीरा वाक्यस्य शेषाद्वितेर्वदन्ति ।।-मुक्तावली